Tuesday, February 09, 2016

200. चोटी होकर बावली (कुण्डलिया)

कुण्डलिया
चोटी  होकर  बावली,  रही  नशे  में  झूम।
कभी वक्ष, कंधे कभी, रही  पीठ  को चूम।
रही  पीठ को  चूम, खा रहीे  ये हिचकोले।
इतराती फिर रही, मगन हो इत-उत डोले।
देख  सलोना  रूप, हुई  है  नीयत  खोटी।
छू - छू  गोरी  अंग, आज   बौराई   चोटी।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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