कुण्डलिया
चोटी होकर बावली, रही नशे में झूम।
कभी वक्ष, कंधे कभी, रही पीठ को चूम।
रही पीठ को चूम, खा रहीे ये हिचकोले।
इतराती फिर रही, मगन हो इत-उत डोले।
देख सलोना रूप, हुई है नीयत खोटी।
छू - छू गोरी अंग, आज बौराई चोटी।
कभी वक्ष, कंधे कभी, रही पीठ को चूम।
रही पीठ को चूम, खा रहीे ये हिचकोले।
इतराती फिर रही, मगन हो इत-उत डोले।
देख सलोना रूप, हुई है नीयत खोटी।
छू - छू गोरी अंग, आज बौराई चोटी।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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