कुण्डलिया
घूँघट से छन-छन पड़े, गोरी मुख पर धूप।
दृग दोनों खामोश हैं, देख मनोहर रूप।
देख मनोहर रूप, आह हृदय से आवे।
बुत भी ले जो देख, जान उसमें आ जावे।
नथनी, कुंडल, हार, और केशों की ये लट।
लेगा मेरी जान, एक दिन जुल्मी घूँघट।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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