Friday, February 12, 2016

207. घूँघट से छन-छन पड़े (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

घूँघट से  छन-छन पड़े, गोरी मुख पर धूप।
दृग  दोनों  खामोश  हैं, देख मनोहर  रूप।
देख  मनोहर  रूप,  आह  हृदय  से  आवे।
बुत भी  ले जो देख, जान  उसमें आ जावे।
नथनी, कुंडल, हार, और  केशों की ये लट।
लेगा  मेरी जान, एक  दिन  जुल्मी  घूँघट।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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