202. कुण्डलिया
रूप तुम्हारा देखकर, होता यही प्रतीत।
तुम्हीं छंद, कविता तुम्हीं, तुम्हीं गजल अरु गीत।
तुम्हीं गजल अरु गीत, भजन, कविता, रूबाई।
तुम ही लगो कवित्त, तुम्हीं दोहा चौपाई।
तुम्हीं कुकुभ, ताटंक, लावणी, रोला प्यारा।
कविगण हैं स्तब्द्ध, देख ये रूप तुम्हारा।
रणवीर सिंह (अनुपम)
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.