Thursday, February 11, 2016

203. आया है बसंत अब (कवित्त)

मनहरण घनाक्षरी (बसंत)

आया है बसंत देखो, शीत का है अंत देखो,
पर मेरे विरहा का, अंत न दिखात है।

जब से गए हैं पिया, आने का न नाम लिया,
सोच-सोच आली मेरा, मन घबरात है।

कोयल के मीठे बोल, सुन जाये जिया डोल,
पपीहा की पिउ-पिउ, दिल को ज़रात है।

मधुमास ऋतु छाई, तन लेत अँगड़ाई,
पिया बिना सखि मोहे, कछु न सुहात है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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