कुण्डलिया
पायल मद में चूर है, अब नहीं सुनती बात।
जब चाहे तब बज उठे, दिन देखे नहिं रात।
दिन देखे नहिं रात, प्रेमधुन रह - रह गाये।
छेड़ विरह की तान, जिया में आग लगाये।
निश-दिन आठों पहर, हिया को करती घायल।
लोक-लाज सब छोड़, फिरे बौराई पायल।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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