Saturday, February 27, 2016

221. मेरे कुछ शेर - 1

मेरे कुछ शेर।

किसे सौन्दर्य कहते हैं, अदाएं चीज क्या होतीं,
अगर ये देखना है तो, हमारे यार से मिलिए।

फकत इस बात पर तुमने, किनारा कर लिया मुझसे,
तुम्हारी बात पर हर बार हाँ में हाँ न कर पाया।

तुम्हारे हुश्न पर लिखने को' सब बेताब बैठे हैं,
अकेला शख्स मैं हूँ जो, तेरे छालों पे' लिखता है।

अगर कुछ बात इंसानों से' हटकर आप में होती,
यकीं मानों तुम्हें अपना, खुदा कब का बना लेता।

मे'रा साथी समझता है, अकल बस डेढ़ तोला थी,
मिली है एक उसको और आधे में सभी दुनियाँ।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Monday, February 22, 2016

220. उस को निहार करके

मापनी - 221  2122    221  2122
समान्त - आरता
पदांत - मैं

उसको निहार करके, किसको  निहारता मैं।
उसका विचार करके, किसको विचारता मैं।।

जिसको समझ रहा हूँ, भगवान  के बराबर,
बोलो  उसे   नजर   से,   कैसे  उतारता  मैं।।

जग को सुधारने का, जिनने लिया है' ठेका,
ऐसे   सुधारकों   को,  कैसे   सुधारता   मैं।।

भगवान मंदिरों में, खुद  कैद  दिख  रहे  हैं,
फिर कौन  देवता को,  लोगो  पुकारता  मैं।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Sunday, February 21, 2016

219. पायल! वर्षों बाद अब (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

पायल! वर्षों बाद अब, मिला सजन का साथ।
चुप  हो   जा   ओ  बावली,  जोड़ूँ  तेरे   हाथ।
जोड़ूँ   तेरे   हाथ,  अरे   क्यों  शोर   करत  है।
लोक लाज की सोच, धीर  क्यों नाहिं धरत है।
पर  पायल   मदमस्त,  पैर  कर  दीने  घायल।
सजन  छुएंगे आज, सोचकर  पगली  पायल।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Friday, February 19, 2016

218. आली मम नख-शिख (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

आली नख-शिख  तक जा, श्यामल केश सँभार।
नथनी,  झुमका,  चूड़ियाँ,   डाल  गले   में   हार।
डाल   गले   में  हार,  बाँध   गजरा  औ   पायल।
कजरे  को  दे  धार,  पिया   को   कर  दे  घायल।
छिड़क  देह   पर  इत्र,  लगा  होंठों   पर   लाली।
रति  सा  मुझे  निखार,  आज  ओ  मेरी  आली।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Thursday, February 18, 2016

217. गीत भी संगीत भी तुम

217. रात भर सोचा प्रिये पर (गीत)

रात भर सोचा प्रिये पर, ठीक से सूझा नहीं है,
यह मेरी वामांगनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

तुम "कुकुभ" "ताटंक" तुम हो, तुम "गजल"  "रूबाइयाँ"।
तुम  "भजन"  "दोहा"  तुम्हीं हो,  हो  तुम्हीं  "चौपाइयाँ"।
"सोरठा"  "रोला"  "सवैया",   तुम   "भुजंगी"   "शालिनी"।
"मंजरी"   हो   "स्वागता"   तुम,   "इन्द्रवज्रा" "मालिनी"।
खिल गया जीवन का उपवन, आगमन जब से हुआ है,
अह मेरी मनभंजनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ  मैं।

"सिन्धु", "पदपादाकुलक", "सारस", "मनोरम", "मालती"।
"विष्णुपद", "सरसी", "बिहारी", "ईश", तुम  "मधुमालती"।
"दुर्मिला", "मदिरा", "विमोहा", तुम "कलाधर", "सार" हो।
हो तुम्हीं "मनहंस" "हाकिल", तुम "सखी" "श्रृंगार" हो।
हर निशा रोशन हुई, जब से पधारी हो प्रिये तुम,
प्रेमदात्री यामिनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

"पञ्च-चामर"  "चंचला"  तुम,  "लावणी"  "हरिगीतिका"।
तुम "विधाता" "मल्लिका" तुम, "शक्ति" "गीता" "गीतिका"।
"वीर"  "बाला"  "स्रग्विणी"  तुम,  "रूपमाला"  "राधिका"।
"चौपई"  "दिगपाल"   "तोमर",   हो  तुम्हीं   "प्रमाणिका"।
जब धरा पर तुम चलो तब, जान जाती है निकल ये,
अह मेरी गजगामिनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

गीत   भी   संगीत   भी   तुम,  तुम   सुरों    की   साधना।
प्रेम   का   मम   स्रोत   तुम   हो,   हो   तुम्हीं   आराधना।
जिंदगी   के    वृत्त    में   तुम,   प्रेम   का    परिमाप   हो।
देह,   अन्तर,   आत्मा   में,   आप   ही   बस   आप   हो।
तुम नहीं  थी तो अधूरी, थी  हमारी जिंदगी यह,
अह मेरी अर्धांगिनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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217.  गीत भी संगीत  भी तुम (गीतिका छंद)

गीत   भी   संगीत   भी   तुम,  तुम   सुरों   की   साधना।
प्रेम   का   मम   स्रोत   तुम  हो,   हो   तुम्हीं   आराधना।
तुम "कुकुभ" "ताटंक" तुम हो, तुम  "गजल" "चौपाइयाँ"।
तुम  "भजन"  "दोहा"  तुम्हीं   हो,  हो   तुम्हीं "रूबाइयाँ"।

"सिन्धु", "पदपादाकुलक", "सारस", "मनोरम", "मालती"।
"विष्णुपद", "सरसी", "बिहारी", "ईश", तुम "मधुमालती"।
"दुर्मिला", "मदिरा", "विमोहा", तुम "कलाधर", "सार"  हो।
हो  तुम्हीं  "मनहंस" "हाकिल", तुम  "सखी"  "श्रृंगार" हो।

"पञ्च-चामर"  "चंचला"  तुम,  "लावणी"  "हरिगीतिका"।
तुम "विधाता" "गीतिका" तुम,"शक्ति" "गीता""मल्लिका"।
"वीर"  "बाला"  "स्रग्विणी"  तुम,  "रूपमाला"  "राधिका"।
"चौपई"  "दिगपाल"   "तोमर",   हो  तुम्हीं   "प्रमाणिका"।

"सोरठा"  "रोला"   "सवैया",   तुम   "भुजंगी" "शालिनी"।
"मंजरी"    हो   "स्वागता"    तुम,  "इन्द्रवज्रा" "मालिनी"।
जिंदगी   के    वृत्त    में   तुम,   प्रेम   का   परिमाप  हो।
देह,   अन्तर,   आत्मा   में,   आप   ही   बस  आप  हो।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Wednesday, February 17, 2016

216. कोई बुला रहा है (गीतिका)

मापनी - 221  2122,    221  2122

कोई बुला रहा है, आवाज दे के' हम को।
फिर से जगा रहा है, दिल में हमारे' गम को।

जग को बताउँ कैसे, हालात यार दिल के।
जो-जो गुजर रही है, कैसे कहूँ सनम को।

तुमने न भूख देखी, देखी न बेकली है।
देखी न पीर मेरी,  देखा न उर के' तम को।

हमको न तुम बनाओ, सौगंध तुम न खाओ।
देखा करीब से है, तुझको ते'री कसम को।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Tuesday, February 16, 2016

215. धीरे से बज बावली (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

धीरे  से  बज  बावली,  मत  कर  इतना  शोर।
पहले   ही   बदनाम   हूँ,  चर्चा    है  चहुँओर।
चर्चा  है   चहुँओर,  मान  मम  बात  निगोड़ी।
लाज शर्म  को छोड़, अरे  मत  बने  छिछोड़ी।
विरहा  की  ये  आग, नहीं  अब  जाय सही रे।
बजना  ही   है  सौत,  अरे   बज   धीरे - धीरे।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Monday, February 15, 2016

214. सजनी के मुख पर गिरे (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

सजनी के  मुख पर गिरे, घूँघट  से  छन धूप।
दृष्टि हमारी  जब  पड़ी, खिला  दोगुना  रूप।
खिला  दोगुना  रूप, चौगुनी  निखरी आभा।
आठ गुना लावण्य, दस  गुना  यौवन  जागा।
बीस  गुना  उत्साह, सौ  गुनी  जागी  अगनी।
ले  लेगा  मम  प्राण,  रूप   तेरा   ये  सजनी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Sunday, February 14, 2016

213. चंचल अँखियाँ देखकर (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

चंचल अँखियाँ  देखकर, किसको रहता होश।
तिरछी चितवन चित्त हर, कर  देती खामोश।
कर  देती  खामोश,  जिया  में  धँसती  जाये।
जिसके उर घुस जाय, उसे फिर कौन बचाये।
देख  बावला   रूप,  हँसे  ये   तेरी   सखियाँ।
छीन रहीं  सुख चैन, हाय ये चंचल  अँखियाँ।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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212. चंचल मुखड़ा देखकर (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

चंचल मुखड़ा देखकर, किसको रहता होश।
विश्व  मोहिनी  रूप  ये,  कर  देता  मदहोश।
कर  देता  मदहोश,  हुश्न  ये  चढ़ता  यौवन।
मद्य भरे  ये  नैन,  सैन  ये  तिरछी  चितवन।
देख  मनोहर  रूप, चाँद  है  उखड़ा-उखड़ा।
छीन रहा सुख चैन, हाय  ये चंचल  मुखड़ा।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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211. पत्नी जब हो साथ में (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

पत्नी का जब साथ हो, हर  दिन होता खास।
प्रेम दिवस हर रोज  है,  हर  मौसम मधुमास।
हर  मौसम  मधुमास, सभी सुख इससे आये।
पहले पति  को  देय,  बाद  में  खुद  ये  खाये।
कभी  लगे  ये  शहद, कभी  है तीखी  चटनी।
सखा, सचिव औ मात, वैद्य सम होती पत्नी।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Saturday, February 13, 2016

210. शौक तुम्हारे में प्रिये (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

शौक  तुम्हारे  में  प्रिये, खाली  रहती  जेब।
हर पल  मुझे सतात है,  यही  तुम्हारा  ऐब।
यही  तुम्हारा   ऐब,  हमें   पड़ता  है  भारी।
क्रय को करिए  बंद, आ  गई अब लाचारी।
लिखा भाग  का लेख, नहीं  टरता  है  टारे।
कर   देंगे  कंगाल,  हाय  ये  शौक  तुम्हारे।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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209. ईश्वर से है कामना (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

ईश्वर  से   है  कामना,  रहो   हमेशा   साथ।
सुख-दुख में छूटे नहीं, तुम  दोनों  का हाथ।
तुम दोनों  का  हाथ, यही  आशीष  हमारा।
मधुरम् और  प्रगाढ़,  रहे  सम्बन्ध  तुम्हारा।
तन-मन रहे निरोग, भरा हो खुशिओं से घर।
मनोकामना  पूर्ण,   करे   दोनों  की  ईश्वर।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
13.02.2016
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208. दुनियाँ भर के रूप से (कुण्डलिया)

208. कुण्डलिया

दुनिया भर  के  रूप  से, ईश्वर  दीन्हा  लाद।
हुश्न तुम्हारा  सृष्टि को, कर  नहिं  दे  बर्बाद।
कर  नहिं  दे बर्बाद,  रूप तुम्हरा  मतवाला।
उन्नत उभरा वक्ष, गाल पर तिल यह काला।
नथनी, झुमके, हार, चूड़ियाँ अरु पैजनिया।
इतना सब  इक साथ, देख  बौराई  दुनिया।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Friday, February 12, 2016

207. घूँघट से छन-छन पड़े (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

घूँघट से  छन-छन पड़े, गोरी मुख पर धूप।
दृग  दोनों  खामोश  हैं, देख मनोहर  रूप।
देख  मनोहर  रूप,  आह  हृदय  से  आवे।
बुत भी  ले जो देख, जान  उसमें आ जावे।
नथनी, कुंडल, हार, और  केशों की ये लट।
लेगा  मेरी जान, एक  दिन  जुल्मी  घूँघट।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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206. कौन भुला सकता है उनको

भारत के वीर सपूत शहीद श्री हनुमनथप्पा को नमन करते हुए उनकी वीरता और शहादत के लिए चार पंक्तियाँ।

ताटंक छंद

कौन भुला सकता है उनको, देश पे' जान गँवाते जो।
उनका जीना, जीना होता, काम देश के आते जो।
अंतिम सत्य मौत है लेकिन, दुनिया रखती याद उन्हें,
देश पे' यौवन, प्राण निछावर, कर शहीद हो जाते जो।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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205. पायल मद में चूर है (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

पायल मद में चूर  है,  अब  नहीं  सुनती  बात।
जब  चाहे  तब  बज उठे, दिन  देखे नहिं  रात।
दिन  देखे  नहिं  रात,  प्रेमधुन  रह - रह  गाये।
छेड़  विरह  की  तान, जिया  में  आग  लगाये।
निश-दिन आठों पहर, हिया को करती घायल।
लोक-लाज  सब  छोड़,  फिरे   बौराई  पायल।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Thursday, February 11, 2016

204. कौन भुला पाया है जग में (मुक्तक)

ताटंक छंद

कौन भुला पाया है जग में, प्यार में' मरनेवालों को।
दुनियाँ नमन किया करती है, सूली चढ़नेवालों को।
परहित सा कोई धर्म नहीं है, पर पीड़ा सा पाप नहीं,
मन को शांति कभी नहीं' मिलती, पीड़ा देनेवालों को।।

रणवीर सिंह(अनुपम)
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203. आया है बसंत अब (कवित्त)

मनहरण घनाक्षरी (बसंत)

आया है बसंत देखो, शीत का है अंत देखो,
पर मेरे विरहा का, अंत न दिखात है।

जब से गए हैं पिया, आने का न नाम लिया,
सोच-सोच आली मेरा, मन घबरात है।

कोयल के मीठे बोल, सुन जाये जिया डोल,
पपीहा की पिउ-पिउ, दिल को ज़रात है।

मधुमास ऋतु छाई, तन लेत अँगड़ाई,
पिया बिना सखि मोहे, कछु न सुहात है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Wednesday, February 10, 2016

202. रूप तुम्हारा देखकर (कुण्डलिया)

202. कुण्डलिया


रूप   तुम्हारा   देखकर,   होता    यही   प्रतीत।
तुम्हीं छंद, कविता तुम्हीं, तुम्हीं गजल अरु गीत।
तुम्हीं  गजल अरु  गीत, भजन, कविता, रूबाई।
तुम   ही   लगो   कवित्त,  तुम्हीं   दोहा  चौपाई।
तुम्हीं   कुकुभ,   ताटंक,  लावणी, रोला  प्यारा।
कविगण  हैं   स्तब्द्ध,   देख   ये   रूप  तुम्हारा।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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कुण्डलिया

201. कंगना पायल से कहे (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

कंगना   पायल   से   कहे,  काहे   होत  अधीर।
हम  दोनों   की  एक  गति,  एक   हमारी   पीर।
एक    हमारी   पीर,   सजन   आ    इसे   हरेंगे।
लखकर,   छूकर,  चूम,   नया   उत्साह   भरेंगे।
वो दिन अब नहि दूर, मिलेंगे जिस  दिन सजना।
मन  मत  करे  मलीन, कहे  पायल  से कंगना।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Tuesday, February 09, 2016

200. चोटी होकर बावली (कुण्डलिया)

कुण्डलिया
चोटी  होकर  बावली,  रही  नशे  में  झूम।
कभी वक्ष, कंधे कभी, रही  पीठ  को चूम।
रही  पीठ को  चूम, खा रहीे  ये हिचकोले।
इतराती फिर रही, मगन हो इत-उत डोले।
देख  सलोना  रूप, हुई  है  नीयत  खोटी।
छू - छू  गोरी  अंग, आज   बौराई   चोटी।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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Sunday, February 07, 2016

199. बात हम जब भी करें तो

मापनी - 2122    2122    2122    212

बात हम जब भी करें तो, सोच  करके  ही करें।
आसमां  से  पूर्व  बातें,  हम  धरातल  की  करें।
वीरता की  शौर्यता  की, बात  है  अच्छी  मगर।
बात इसके साथ भारत, के अमन  की भी करें।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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