भुजंगप्रयात छंद (वाचिक भार) पर आधारित एक गीतिका।
सभी से नजर ये, मिलाने की' कोशिश।
करो तुम न यूँ दिल, लगाने की' कोशिश।
अभी सिर्फ हो तुम, अठारह बरस की,
नहीं ठीक यूँ पास, आने की' कोशिश।
जिधर देखिये मनचलों का है मजमा,
करो इनसे खुद को, बचाने की' कोशिश।
न यूँ रोज सजधज, के' दर्पण निहारो,
कहीं कर न बैठे, समाने की' कोशिश।
जिसे हुश्न से खुद, खुदा ने सजाया,
उसे क्या करो अब, सजाने की' कोशिश।
ये कदली सी' काया, लचीली कमर ये,
इसे मत करो यूँ, लचाने की' कोशिश।
नहीं प्यार छुपता, किसी के छुपाये,
करो मत इसे यूँ, छुपाने की' कोशिश।
समर्पण किया तो, भरोसा भी' करिये,
नहीं ठीक ये आजमाने की' कोशिश।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-122 122 122 122
सभी से नजर ये, मिलाने की' कोशिश।
करो तुम न यूँ दिल, लगाने की' कोशिश।
नए दौर में ठीक होती नहीं है,
मुहब्बत को दिल में, जगाने की' कोशिश।
अभी सिर्फ हो तुम, अठारह बरस की,
नहीं ठीक यूँ पास, आने की' कोशिश।
करो मत अभी ये, मुनासिब नहीं है,
ज़माने को अपना, बनाने की' कोशिश।
जिधर देखिये मनचलों का है मजमा,
करो इनसे खुद को, बचाने की' कोशिश।
जिसे हुश्न से खुद, खुदा ने सँवारा,
उसे क्या करो अब, सजाने की' कोशिश।
न तुम रोज सजधज, ये' दर्पण निहारो,
कहीं कर न बैठे, समाने की' कोशिश।
तुम्हारी सहेली, जली जा रही है,
करो और मत तुम, जलाने जी' कोशिश।
वदन है कमल सा, गुलाबी अधर ये,
नशीले नयन ये, लजाने की' कोशिश।
हया की है' लाली, कपोलो पे' छाई,
उसी पर ये' जुल्फें, गिराने की' कोशिश।
तना वक्ष गर्वित, ये' दो दो उभारें,
सुराही सी' गर्दन, झुकाने की' कोशिश।
ये कदली सी' काया, लचीली कमर ये,
इसे मत करो यूँ, लचाने की' कोशिश।
शरद झील में तुम, नहाने न उतरो,
करो काहे हलचल, मचाने की' कोशिश।
नहीं प्यार छुपता, किसी के छुपाये,
करो मत इसे यूँ, छुपाने की' कोशिश।
जो' इजहार करते, हो' खुलकर के' करिये,
करो काहे' तुम, हिचकिचाने की' कोशिश।
समर्पण किया तो, भरोसा भी' करिये,
नहीं ठीक ये आजमाने की' कोशिश।
अगर आ गए हो, तो पहलू में बैठो,
करें आज हर गम, भुलाने की' कोशिश।
हमारे जिगर में, अँधेरा बहुत है,
करो तुम इसे जगमगाने की' कोशिश।
अभी ठीक से बैठ पाये नहीं हो,
अभी से करो यार, जाने की' कोशिश।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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