प्रेम में सयानी हुई, कृष्ण की दीवानी हुई,
खुलेआम मीरा कहे, मोहन ही मीत है।
माना न समाज जब, छोड़ लोक लाज तब,
साधुओं के बीच रह, गाये प्रेम गीत है।
नाचे गाये, दिन-रात, बाकूँ कछु न सुहात,
जग में निराली कैसी, प्रीत की ये रीत है।
कृष्ण-कृष्ण, बोल-बोल, कृष्ण में दिया है घोल,
जिस ओर देखो सिर्फ, प्रीत ही प्रीत है।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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