Sunday, December 20, 2015

174. प्रेम में सयानी हुई (कवित्त)

प्रेम में सयानी हुई, कृष्ण की दीवानी हुई,
खुलेआम मीरा कहे, मोहन ही मीत है।

माना न समाज जब, छोड़ लोक लाज तब, 
साधुओं के बीच रह, गाये प्रेम गीत है।

नाचे गाये, दिन-रात, बाकूँ कछु न सुहात,
जग में निराली कैसी, प्रीत की ये रीत है।

कृष्ण-कृष्ण, बोल-बोल, कृष्ण में दिया है घोल,
जिस ओर देखो सिर्फ, प्रीत ही प्रीत  है।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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