दुर्मिल सवैया (8 सगण अर्थात 112)
दिन रात यही रटना रटतीं, सब छोड़ पर ध्यान करौ।
तुम प्राण हमीं पर वार रहीं, हर रोज यही गुणगान करौ।
कछु देर समीप रहो सजनी, अरु जा मन की पहिचान करौ।
हमरे दिल में किस ठौर बसौ, तब ही इस ज्ञान का' भान करौ।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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अरु = और
जा मन = इस मन
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