Saturday, December 12, 2015

162. ठंड आ गई है अब (कवित्त)

ठंड आ गई है अब, आते छा गई है अब,
अपना असर हम, सबको दिखात है।

जामें खूब भूख लगे, अति प्यारी धूप लगे,
पूड़ी औ पराठा कोई, दाल भात खात है।

कोहरे की मार कहीं, और है तुषार कहीं,
देख-देख कृषक का, मन घबड़ात है।

हिंद का किसान लोगों, हिंद की है जान लोगों,
नंगे तन ग्रीष्म-शीत, सब सह जात है।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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