Saturday, December 19, 2015

169. नज़र एक तन पर

नज़र एक तन पर, नज़र इक बदन पर, नज़र एक नज़रों से टकरा रही थी।
नज़र हो ब्याही, नज़र बिन ब्याही, हमें सिर्फ क्वारी नज़र आ रही थी।
नज़र अपने आशिक की नज़रों से मिलकर, नज़र फिर शरम से झुकी जा रही थी।
खुदा जाने या फिर नजरवाला जाने, कि किसकी नज़र अब कहाँ जा रही थी।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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