Saturday, December 19, 2015

170. हजारों नज़र से नज़र को बचाकर

हजारों नज़र से, नज़र को बचाकर, वो’ धीरे से’ आँखों की’ पुतली हिलाना।
नज़र फिर भी’ प्यासी की’ प्यासी रही तो, वो’ धीरे से’ गर्दन सुराही घुमाना।
नज़र पहुँची’ जब रूपसागर के’ तट पर, वो’ जी भर के’ अतृप्त प्यासें बुझाना।
नज़र से नज़र कुछ मिली इस तरह से, नज़र के सिवा फिर नज़र कुछ न आना॥

रणवीर सिंह (अनुपम)
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