मापनी-1222 1222 1222 1222
सभी कुछ सामने तेरे, बता अब क्या इरादा है।
अभी खुलकर मना कर दे, निभाना गर न वादा है।
फकत इस बात पर करना, किनारा ठीक होगा क्या?
सरल है जिंदगी मेरी, ये' जीवन सीधा' सादा है।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-1222 1222 1222 1222
सभी कुछ सामने तेरे, बता अब क्या इरादा है।
अभी खुलकर मना कर दे, निभाना गर न वादा है।
फकत इस बात पर करना, किनारा ठीक होगा क्या?
सरल है जिंदगी मेरी, ये' जीवन सीधा' सादा है।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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आता है चुनाव जब, आते सभी गॉंव तब,
हम को ही वोट देना, शीश को नवात हैं।
गरज पडे तो आप, गधे को भी कहें बाप,
थूकें और चाट लेत, नेक न लजात हैं।
जिस दिन जीत जाँय, उस दिन ही दिखाँय,
बाकी पाँच साल नहीं, मुख को दिखात हैं।
अरबों कमाय लेत, कोठियाँ बनाय लेत,
बड़ी-बड़ी गाड़ियों में, अब आत जात हैं।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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साथियो! एक मुक्तक मेरी प्रेरणा, मेरी अर्धांगिनी के बारे में।
मापनी - 122 122 122 122
तुम्हीं प्यार हो और कारण तुम्हीं हो।
मे'रे दर्द, ग़म का, निवारण तुम्हीं हो।
तुम्हीं से शुरू गीत, तुम पर खतम हैं।
तुम्हीं छंद मेरे, उदाह'रण तुम्हीं हो।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मुझे फूल बनने, की' हसरत नही है।
बनू तो चुभन दूँ, ये' फितरत नही है।
गले में सजायो, या' डालो शवों पर।
किसी से हमें कोई नफरत नही है।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-1222 1222 1222 1222
मुखौटों पर मुखौटों को, लगाना कब हमें आया।
कहें कहकर पलट जाएँ, हुनर हमने कहाँ पाया।
कभी इसकी कभी उसकी, तमन्ना कब रही "अनुपम"।
जनम ले सिंह का, जूठन, अगर खाया तो' क्या खाया।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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विधाता छंद पर आधारित
मापनी-1222 1222 1222 1222
हमारी ही बदौलत से, यहाँ भर पेट खाते हो।
मगर अफ़सोस है इतना, हमें ही भूल जाते हो।
हमारी मौत की चर्चा, से' तुमको वास्ता इतना।
उसी चर्चा की' चर्चा कर, सदा चर्चा में' आते हो॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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भुजंगप्रयात छंद (वाचिक भार) पर आधारित एक गीतिका।
सभी से नजर ये, मिलाने की' कोशिश।
करो तुम न यूँ दिल, लगाने की' कोशिश।
अभी सिर्फ हो तुम, अठारह बरस की,
नहीं ठीक यूँ पास, आने की' कोशिश।
जिधर देखिये मनचलों का है मजमा,
करो इनसे खुद को, बचाने की' कोशिश।
न यूँ रोज सजधज, के' दर्पण निहारो,
कहीं कर न बैठे, समाने की' कोशिश।
जिसे हुश्न से खुद, खुदा ने सजाया,
उसे क्या करो अब, सजाने की' कोशिश।
ये कदली सी' काया, लचीली कमर ये,
इसे मत करो यूँ, लचाने की' कोशिश।
नहीं प्यार छुपता, किसी के छुपाये,
करो मत इसे यूँ, छुपाने की' कोशिश।
समर्पण किया तो, भरोसा भी' करिये,
नहीं ठीक ये आजमाने की' कोशिश।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-122 122 122 122
सभी से नजर ये, मिलाने की' कोशिश।
करो तुम न यूँ दिल, लगाने की' कोशिश।
नए दौर में ठीक होती नहीं है,
मुहब्बत को दिल में, जगाने की' कोशिश।
अभी सिर्फ हो तुम, अठारह बरस की,
नहीं ठीक यूँ पास, आने की' कोशिश।
करो मत अभी ये, मुनासिब नहीं है,
ज़माने को अपना, बनाने की' कोशिश।
जिधर देखिये मनचलों का है मजमा,
करो इनसे खुद को, बचाने की' कोशिश।
जिसे हुश्न से खुद, खुदा ने सँवारा,
उसे क्या करो अब, सजाने की' कोशिश।
न तुम रोज सजधज, ये' दर्पण निहारो,
कहीं कर न बैठे, समाने की' कोशिश।
तुम्हारी सहेली, जली जा रही है,
करो और मत तुम, जलाने जी' कोशिश।
वदन है कमल सा, गुलाबी अधर ये,
नशीले नयन ये, लजाने की' कोशिश।
हया की है' लाली, कपोलो पे' छाई,
उसी पर ये' जुल्फें, गिराने की' कोशिश।
तना वक्ष गर्वित, ये' दो दो उभारें,
सुराही सी' गर्दन, झुकाने की' कोशिश।
ये कदली सी' काया, लचीली कमर ये,
इसे मत करो यूँ, लचाने की' कोशिश।
शरद झील में तुम, नहाने न उतरो,
करो काहे हलचल, मचाने की' कोशिश।
नहीं प्यार छुपता, किसी के छुपाये,
करो मत इसे यूँ, छुपाने की' कोशिश।
जो' इजहार करते, हो' खुलकर के' करिये,
करो काहे' तुम, हिचकिचाने की' कोशिश।
समर्पण किया तो, भरोसा भी' करिये,
नहीं ठीक ये आजमाने की' कोशिश।
अगर आ गए हो, तो पहलू में बैठो,
करें आज हर गम, भुलाने की' कोशिश।
हमारे जिगर में, अँधेरा बहुत है,
करो तुम इसे जगमगाने की' कोशिश।
अभी ठीक से बैठ पाये नहीं हो,
अभी से करो यार, जाने की' कोशिश।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-122 122 122 122
नहीं ठीक यूँ दिल, दुखाने की बातें।
चलो हम करें मन, मिलाने की बातें।
कदम दो बढ़े हम, कदम दो बढ़ो तुम,
करें फासले को, मिटाने की बातें।
दिलों में जो गाँठों, को पाले हुए हैं,
उन्हीं को करें अब, गलाने की बातें।
किसी पे भरोसा, तो करना पड़ेगा,
अजी छोड़िये आजमाने की बातें।
अगर आ गए हो, तो पहलू में बैठो,
करें आज रिश्ते, निभाने की बातें।
अगर प्रेम करते, तो इकरार करिये,
अरे छोड़िये अब, लजाने की बातें।
अभी ठीक से बैठ पाये नहीं हो,
अभी से करो यार जाने की बातें।
सभी था हवाई, हवाई थे नारे,
वो अच्छे दिनों को दिखाने की बातें।
हवा दे रहे क्यों, हो चिनगारियों को
करो क्यों मेरा घर, जलाने की बातें।
चढ़ा आस्तीनें, वो मंचों पे करते,
खुलेआम दंगे, कराने की बातें।
समझनी ही होगी, सियासत हमें भी
करें क्यों हमें ये, लड़ाने की बातें।
सदा से बनाते, हमें आ रहे हो,
अजी कर रहे फिर, बनाने की बातें।
हमें सिर्फ नादां, न समझे जमाना,
समझता हूँ मैं भी, जमाने की बातें।
दिए जख्म जो भी, सियासत ने हमको,
करें उन पे मलहम, लगाने की बातें।
गमों से उबरने, की कोशिश करें फिर,
करें फिर से हम मुस्कराने की बातें।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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बड़े हुशियार हैं, दिल का शिकार करते हैं।
निशाना साधकर, छाती पे' वार करते हैं।
न ये तलवार का, खंजर का सहारा लेते।
नज़र के तीर को, सीने के' पार करते हैं।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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विधाता/शुद्धगा छंद (14/14)
अजब था हाल दोनों का, अजब थे वो पुराने दिन।
अकेले रात भर जगना, तड़फ के वो सुहाने दिन।
जरा सी ज़िन्दगी उससे भी' कम है नौजवानी ये,
मनाने-रूठने में अब नहीं हमको गँवाने दिन।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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प्रेम में सयानी हुई, कृष्ण की दीवानी हुई,
खुलेआम मीरा कहे, मोहन ही मीत है।
माना न समाज जब, छोड़ लोक लाज तब,
साधुओं के बीच रह, गाये प्रेम गीत है।
नाचे गाये, दिन-रात, बाकूँ कछु न सुहात,
जग में निराली कैसी, प्रीत की ये रीत है।
कृष्ण-कृष्ण, बोल-बोल, कृष्ण में दिया है घोल,
जिस ओर देखो सिर्फ, प्रीत ही प्रीत है।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी- 2122 2122 2 122 212
सीज फायर का उलंघन, इक चुनौती बन गया।
पाक को काबू में' रखना, इक चुनौती बन गया।।
इस लचीलेपन के चलते, बड़ रहा आतंक ये।
दुश्मनों का नाश करना, इक चुनौती बन गया।।
किस तरह से राजनेता, हो रहे धनवान यों,
इसका' पर्दाफाश करना, इक चुनौती बन गया।।
रिश्वतखोरी मिल चुकी है, अब हमारे रक्त में,
खून गंदा साफ करना, इक चुनौती बन गया।।
मंदगति का कानून से, मुलजिम सभी निर्दोष हैं,
वक्त पर इंसाफ करना, इक चुनौती बन गया।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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जरा सोच तू कौन पथ पर चला है,
कुकर्मों का' पौधा भला कब फला है,
कभी जग न सुधरा सुधारे यहाँ पर,
खुदी लोग सुधरें तभी सब भला है।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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हकीकत लिखी है हकीकत लिखूँगा।
जुबां की कभी भी न कीमत लिखूँगा।
गरीबी, अमीरी, लुटाई, खुदाई।
लिखूँगा मैं' जो साफ नीयत लिखूँगा।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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हजारों नज़र से, नज़र को बचाकर, वो’ धीरे से’ आँखों की’ पुतली हिलाना।
नज़र फिर भी’ प्यासी की’ प्यासी रही तो, वो’ धीरे से’ गर्दन सुराही घुमाना।
नज़र पहुँची’ जब रूपसागर के’ तट पर, वो’ जी भर के’ अतृप्त प्यासें बुझाना।
नज़र से नज़र कुछ मिली इस तरह से, नज़र के सिवा फिर नज़र कुछ न आना॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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नज़र एक तन पर, नज़र इक बदन पर, नज़र एक नज़रों से टकरा रही थी।
नज़र हो ब्याही, नज़र बिन ब्याही, हमें सिर्फ क्वारी नज़र आ रही थी।
नज़र अपने आशिक की नज़रों से मिलकर, नज़र फिर शरम से झुकी जा रही थी।
खुदा जाने या फिर नजरवाला जाने, कि किसकी नज़र अब कहाँ जा रही थी।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-1222 1222 1222 1222
बहारें साथ जब छोड़ें, तो' मुझको याद कर लेना,
जरूरत जब पड़े मेरी, तो' मुझको याद कर लेना,
अभी अपनों को' अजमाओ, अभी गैरों को' अपनाओ,
तबीयत सबसे' भर जाए, तो मुझको याद कर लेना॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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दुर्मिल सवैया (8 सगण अर्थात 112)
दिन रात यही रटना रटतीं, सब छोड़ पर ध्यान करौ।
तुम प्राण हमीं पर वार रहीं, हर रोज यही गुणगान करौ।
कछु देर समीप रहो सजनी, अरु जा मन की पहिचान करौ।
हमरे दिल में किस ठौर बसौ, तब ही इस ज्ञान का' भान करौ।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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अरु = और
जा मन = इस मन
उमंगों औ तरंगों के, नशे में डोलने लगते,
फिजां में मस्त नज़रों से, नशा सा घोलने लगते,
पिलाकर जाम आँखों से, हमें मदहोश करके वो,
हया औ शर्म के घूँघट, को' कुछ-कुछ खोलने लगते।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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जब से है देखा तुझे, तब से न होश मुझे,
समझा रहे हैं लोग, दवा-दारू लीजिये।।
कितने गुजारे साल, अब तो बुरा है हाल,
कुछ तो रहम करो, कुछ तो पसीजिये।।
मिलो तो सुकून मिले, मन का प्रसून खिले,
मुरझा हुआ है दिल, कुछ ख्याल कीजिये।।
मन में उछाल वही, अब भी सवाल वही,
चाह तेरे हाथ की है, लीजिये या दीजिये।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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जो बातें मैं कह नहिं पाया, अब तक पत्र हजारों में।
वे सारी बातें कह डाली, उनने चंद इशारों में।
इक मैं हूँ जो तीसौ दिन ही, गुमसुम सा दिखता रहता।
इक वो हैं जो खिलती रहतीं, पैने निष्ठुर खारों में।।
पति-पत्नी का पावन रिश्ता, प्रेम समर्पण से चलता।
काहे इसे घसीट रहे हो, तुम अनुबंध, करारों में।।
जो हैं देशद्रोही उनको, प्राण दंड देना होगा।
फर्क हमें करना ही होगा, देशभक्त, गद्दारों में।।
निष्ठायें मोहताज न धन की, पन्ना दाई से सीखो।
पैसों से कब आती निष्ठा, अह जग पहरेदारों में।।
नैतिकता सिखलाने वाले, खुद कामी, व्यभिचारी हैं।
अब कैसे विश्वास करें हम, धर्म के ठेकेदारों में।।
जिस्म नुमाइश अब टीवी पर, खुल्लम-खुल्ला होती हैं।
जिस्मफरोशी, हर हथकंडा, जायज है व्यापारों में।।
पैसा अब प्रधान हुआ है, पैसे की खातिर देखो।
शयनकक्ष की बातें होती, मंचों पर, बाजारों में।।
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जातिवाद औ धर्मवाद जब, काबिज़ हो सरकारों में।
तो कैसे विश्वास करें हम, समता के अधिकारों में।
सदियाँ गुजरी, गुजर गए युग, वही गरीबी लाचारी,
ईश्वर बनकर एक न आया, ईश्वर के अवतारों में।
साँपनाथ औ नागनाथ में, एक हमें चुनना पड़ता,
अपना प्रतिनिधि ढूँढ रहे हम, खूनी औ हत्यारों में।
लंबी-चौड़ी इन बातों से, भला नहीं होने वाला।
खाली बातें जोश न भरती, व्याकुल, भूख के' मारों में।।
संसद ठप्प पड़ी रहती है, खर्च करोड़ों हो जाते।
जनता के मुद्दे मरते हैं, हर दिन हाहाकारों में।।
भारत का हित नहीं दीखता, पश्चिम की इस पूँजी में।
कोठी, क्लबों, फार्महाउस, बड़ी-बड़ी इन कारों में।।
आज टिटहरी कविता पढ़ती, उल्लू करते आयोजन।
हंस हमें तल्लीन दिखें अब, कौओं की जयकारों में।।
नैतिकता, ईमान, यहाँ बस, लगें किताबों की बातें।
सच का सूरज डूब गया हो, जैसे कहीं कछारों में।।
भूखे-नंगे, दीन-गरीबों, से डरना सीखो साहब।
कभी-कभी आ जाती हिम्मत, बुझदिल औ लाचारों में।।
प्राण किसी के ले लो 'अनुपम', शब्दों का क्या करियेगा।
क़त्ल करे जो आवाज़ों को, धार कहाँ तलवारों में।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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कभी तकरार करते हो, कभी इन्कार करते हो।
मगर मुझको यकीं है ये, हमीं से प्यार करते हो।
तभी तो चूड़ियाँ, नथनी, नयन मदिरा भरे प्याले।
सभी को यूँ सजाकर के, इन्हें तैयार करते हो।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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ठंड आ गई है अब, आते छा गई है अब,
अपना असर हम, सबको दिखात है।
जामें खूब भूख लगे, अति प्यारी धूप लगे,
पूड़ी औ पराठा कोई, दाल भात खात है।
कोहरे की मार कहीं, और है तुषार कहीं,
देख-देख कृषक का, मन घबड़ात है।
हिंद का किसान लोगों, हिंद की है जान लोगों,
नंगे तन ग्रीष्म-शीत, सब सह जात है।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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लावणी छंद
(16/14, हर चरण का पदांत 12)
इक दिन मुझसे मिलने आओ, मन में नव उल्लास लिए।
अँखियों में ले स्वप्न हजारों, अंतर में विश्वास लिए।।
तुम भी कब से तड़फ रही हो, विरह वेदना में सजनी,
और इधर बैठा हूँ मैं भी, मधुर मिलन की आस लिए।।
मृग सहरा में ज्यों जल खोजे, दृष्टि तुम्हें है खोज रही,
व्याकुल रीती इन अँखियों में, सदियों की हूँ प्यास लिए।।
रहम करो इस दीवाने पर, कब से ये विक्षिप्त पड़ा,
दिल बहिलाने को आ जाओ, मृदु होठों पर हास लिए।।
हुआ आगमन तेरा जब से, सृष्टि लगे बदली-बदली,
जैसे रति अवतरित हुई, आँचल में मधुमास लिए।।
चलता फिरता मदिरालय हो, जग बौराया पीने को,
मद्य भरी इन दो अँखियों में, आई हो कुछ खास लिए।।
भँवरे भूल गए कलियों को, पवन लगे बहकी-बहकी,
आम सलामी झुक-झुक देते, अपने संग पलास लिए।।
रंग दूधिया, कोमल काया, कमर लचकती बल खाये,
देह कसी सारंगी सी है, नूतन नव अहसास लिए।।
श्यामल जुल्फें, गाल गुलाबी, अधर अधखिली दो कलियाँ,
उन्नत वक्ष, सुराही गर्दन, तन है पूर्ण विकास लिए।।
तुम मंदिर सी, तुम मस्जिद सी, तुम गुरूद्वारे सी लगती,
लब्ज़ों में हो दुआ लिए तुम, होंठों पर अरदास लिए।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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पति-पत्नी दोऊ बने, सुख-दुःख के हक़दार।
ऐसे रिश्तों से फले, प्रीत और परिवार।
प्रीत और परिवार, इन्हें आदर्श बनाते।
पत्नी जब हो संग, पती इज्जत को पाते।
घर में रहकर मित्र, बात भार्या की सुननी।
तभी कुशल सर्वत्र, रहें मिलजुल पति-पत्नी।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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पत्नी जी हैं माँगती, मुझसे सदा हिसाब।
कितना वेतन मिल रहा, दीजे सही जवाब।
दीजे सही जवाब, टालते काहे हरदम।
सच-सच हमें बताउ, आपकी तनखा क्यों कम।
बात, बात पर कहें, नहीं तुमसे पटनी जी।
जब से घर में घुसीं, यही कहतीं पत्नी जी।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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गीता सारे विश्व को, कर्मयोग सिखलाय।
किंकर्तव्यविमूढ़ में, हमें राह दिखलाय।
हमें राह दिखलाय, कहे संग रहो धर्म के।
फल की चिंता छोड़, भाग्य है जुड़ा कर्म से।
जो जन्मे सो मरे, कौन सदियों तक जीता।
जन्म-मरण का मर्म, हमें समझाती गीता।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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