754. यों न काँटे बिछा (मुक्तक)
यों न काँटे बिछा प्रेम की राह में, प्रेमपथिकों को तू इस तरह मत सता।
प्रेम सरहद पहाड़ों से कब है रुका, प्रेम खुद ही बना लेता निज रास्ता।
प्रेम वाणी नहीं प्रेम भाषा नहीं, प्रेम मुखरित नहीं प्रेम तो मौन है।
प्रेम की है कोई पाठशाला नहीं, प्रेम का प्रेमग्रंथों से क्या वास्ता।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.04.2019
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