Friday, April 12, 2019

752. एक बार एक मोर (घनाक्षरी)

752. एक बार एक मोर (घनाक्षरी)

एक  बार  एक  मोर, बगुला   के   द्वार  गया,
अर्ज  यही   मेरे  संग, नाथ   न्याय  कीजिए।

उल्लू मेरी  मोरनी को, कहता निज भामिनी,
स्वामी आप   दया   करें,  मुझपे   पसीजिए।

वक बोला मोर से क्यों, उल्लू से बिगाड़ करे,
दे  दे   उसे  मोरनी  ये,  बैर  काहे   लीजिए।

हंस  छोड़  बगुलों  पे, करोगे  भरोसा   यदि,
धन-धान्य बीबियाँ भी, उल्लुओं को दीजिए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.04.2019
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