748. पढ़ते-पढ़ते मर गये (कुंडलिया)
पढ़ते-पढ़ते मर गये, हम तो सच का पाठ।
साहब ने सीखा फकत, सोलह दूनी आठ।
सोलह दूनी आठ, ठोंककर सीना कहते।
झूठ-कपट-छलछंद, इसी को जीना कहते।
हरिश्चन्द्र बन गए, झूठ वो गढ़ते-गढ़ते।
रहे मूर्ख के मूर्ख, सत्य हम पढ़ते-पढ़ते।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.04.2019
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