Monday, April 08, 2019

748. पढ़ते-पढ़ते मर गये (कुंडलिया)

748. पढ़ते-पढ़ते मर गये (कुंडलिया)

पढ़ते-पढ़ते मर गये, हम तो सच  का पाठ।
साहब ने सीखा फकत, सोलह  दूनी आठ।
सोलह  दूनी  आठ, ठोंककर  सीना कहते।
झूठ-कपट-छलछंद, इसी को जीना कहते।
हरिश्चन्द्र  बन   गए,  झूठ  वो  गढ़ते-गढ़ते।
रहे मूर्ख  के  मूर्ख, सत्य  हम  पढ़ते-पढ़ते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.04.2019
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