Tuesday, April 30, 2019

763. जल से ही है जिंदगी (कुंडलिया)

763. जल से जिंदा यह जगत (कुंडलिया)

जल से  जिंदा यह जगत, जल से ही है सृष्टि।
जल का हम संचय करें, व्यर्थ न हो जलवृष्टि।
व्यर्थ न हो जल वृष्टि, करें हम  इसका रक्षण।
बर्वादी  पर   रोक, लगे  तत्काल  इसी  क्षण।
जल का  हो सम्मान, बहे नहिं यों  ही नल से।
सब का है अस्तित्व, सुरक्षित  केवल जल से।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.04.2019
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पानी  से   है   जिंदगी, पानी   से   है   सृष्टि।
पानी  का  संचय करें, व्यर्थ  न  जाए  वृष्टि।
व्यर्थ  न  जाए वृष्टि, करें हम  इसका रक्षण।
बर्वादी  पर  रोक, लगे  तत्काल  इसी  क्षण।
पानी  का  रख  मान, सुना  नाना-नानी  से।
मानव का  अस्तित्व, सुरक्षित बस पानी से।

Sunday, April 28, 2019

762. जो थे कंचे काँच के (कुंडलिया)

762. जो थे कंचे काँच के (कुंडलिया)

जो थे कंचे काँच  के, हुए  सभी अनमोल।
असली हीरों का यहाँ, दो कौड़ी का मोल।
दो कौड़ी का  मोल, बचा  है  सच्चाई का।
लुच्चों  का  है  राज, जमाना  लुच्चाई का।
देशभक्त  कहलांय, दिखाते  जौन  तमंचे।
कोहनूर  हो  गए, काँच  के  जो  थे  कंचे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.04.2019
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761. चंपा बेला कुमुदिनी (कुंडलिया)

761. चंपा बेला कुमुदिनी (कुंडलिया)

बेला, चंपा, कुमुदिनी, लगो खिली  कचनार।
ऋषियों का व्रत खंड हो, तुम वो चंचल नार।
तुम वो  चंचल नार, ईश खुद  जिसे  गढ़ा है।
अंग-अंग  पर  रंग,  रूप,  लावण्य  चढ़ा  है।
कितने जप-तप छोड़, बन गए  तुम्हरे चेला।
जब  से आईं  आप, आ गई  मधुरिम  बेला।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.04.2019
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Saturday, April 27, 2019

760. बिना ही दोष के (मुक्तक)

760. बिना ही दोष के (मुक्तक)

बिना  ही  दोष  के  हमको न  डाँटिए  साहब।
हमें  मत  धर्म  अरु जातों  में  बाँटिए  साहब।
क्रांति की कोपलें एक दिन हमीं से निकलेंगी।
इसलिए  होश में रह  हमको  छाँटिए  साहब।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.04.2019
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759. दरी बिछाते हम रहे (कुंडलिया)

759. दरी बिछाते हम रहे (कुंडलिया)

जिस तरह से राजनैतिक पार्टियाँ उन कार्यकर्ताओं को जो बीसों साल से पार्टियों का झंडा-डंडा लेकर उन्हें अपने खून-पसीने से सींचते रहते हैं को टिकट न देकर, उनकी निष्ठा समर्पण को नकारकर पैराशूट से उतारे अनुभवहीन प्रत्याशियों को टिकट देतीं हैं यह प्रजातंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है। इस तरह कर्मठ ईमानदार कार्यकर्ता पक्षपात के शिकार होते रहते हैं।

ऐसे में अगर कोई पार्टी यह कहती है कि उनके यहाँ पक्षपात, खरीदफरोख्त, भाई-भतीजावाद, परिवारवाद नहीं है तो इस पर कौन विश्वास करेगा।

ऐसे ही उपेक्षित कार्यकर्ताओं की व्यथा पर यह कुंडलिया छंद।

759. दरी बिछाते हम रहे (कुंडलिया)

दरी  बिछाते  हम  रहे, टिकट ले  गए और।
मेहनतकश  को  है  नहीं, राजनीत में ठौर।
राजनीत में  ठौर, भला कब  हमें  मिला है।
वायुयान  से आत, प्रत्याशी  यही  गिला है।
घर-घर हम ही जाँय, लठ्ठ भी हम ही खाते।
टिकट  ले गए और, रहे  हम  दरी  बिछाते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.04.2019
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758. दुर्बल तन आँखें धँसी (कुंडलिया)

758. दुर्बल तन आँखें धँसी (कुंडलिया)

दुर्बल तन आँखें धँसी, मनवा  दिखे  उदास।
धैर्य  बगावत  कर रहा,  टूट  गया  विश्वास।
टूट  गया   विश्वास, स्वयं   रहबर   ने  लूटा।
बेवा, वृद्ध, गरीब, भाग्य  सब ही  का फूटा।
धरे  हाथ पर हाथ, रो  रहे  हैं  मन  ही मन।
पेट पीठ से चिपक, धँसी आँखें, दुर्बल तन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.04.2019
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757. हम तो टूटे हुए (मुक्तक)

757. हम तो टूटे हुए (मुक्तक)

हम  तो  टूटे  हुए  छप्पर  की' बात  करते हैं।
महाशय आप ये किस घर की बात करते हैं।
जिन्होंने साल में खरबों की जोड़ ली दौलत।
हुज़ूर क्यों नहीं  उस ज़र की  बात  करते हैं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.04.2019
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Friday, April 26, 2019

756. अरे अकारण मिलनेवाली (मुक्तक)

756. अरे अकारण मिलनेवाली (मुक्तक)

अरे अकारण  मिलनेवाली, सौगातों  से  बचकर  रहना।
बेमौसम  इन  कृपाओं  की, बरसातों  से बचकर  रहना।
झंडाछाप   देशभक्तों   से, राष्ट्र दिख  रहा  है  संकट  में।
कुटिल धूर्त चालाक भेड़ियों, की घातों से बचकर रहना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.04.2019
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Wednesday, April 24, 2019

755. गुस्से में सही मेरे सनम (मुक्तक)

755. गुस्से में सही मेरे सनम (मुक्तक)

गुस्से  में सही  मेरे  सनम,  बात  किया  कर।
जो भी छुपा है दिल में, बयानात  किया कर।
जो  बात  प्रेम  में  है, नफरत   में   है   कहाँ।
दिल खोलकर तू नेह की,बरसात किया कर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.04.2019
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Tuesday, April 23, 2019

754. यों न काँटे बिछा (मुक्तक)

754. यों न काँटे बिछा (मुक्तक)

यों न काँटे बिछा प्रेम की राह में, प्रेमपथिकों को तू इस तरह मत सता।
प्रेम सरहद पहाड़ों से कब है रुका, प्रेम खुद ही बना लेता निज रास्ता।
प्रेम वाणी नहीं प्रेम भाषा नहीं, प्रेम  मुखरित  नहीं प्रेम तो  मौन है।
प्रेम की है कोई पाठशाला नहीं, प्रेम  का  प्रेमग्रंथों  से  क्या वास्ता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.04.2019
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Saturday, April 13, 2019

753. तुमको मंदिर-मस्जिद प्रिय हैं (मुक्तक)

753. तुमको मंदिर-मस्जिद प्रिय हैं (मुक्तक)

तुमको मंदिर-मस्जिद प्रिय हैं, बड़े शौक से जाओ तुम।
तुमको भजन  कीर्तन  गाना, रोका किसने गाओ तुम।
लेकिन इससे लाभ किसे है, सोचो, समझो, मनन करो।
इसीलिए   कहता   रहता  हूँ, थोड़ी  अक्ल लगाओ तुम।

जिसको मंदिर-मस्जिद प्रिय हैं, बड़े शौक से जाए वो।
जिसको भजन  कीर्तन  गाना, रोका किसने  गाए वो।
थोड़ी अक्ल  लगाकर देखे, इससे किसको  लाभ हुआ।
स्वयं समझ ले  यही  बहुत है, मुझको ना समझाए वो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
13.04.2019
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Friday, April 12, 2019

752. एक बार एक मोर (घनाक्षरी)

752. एक बार एक मोर (घनाक्षरी)

एक  बार  एक  मोर, बगुला   के   द्वार  गया,
अर्ज  यही   मेरे  संग, नाथ   न्याय  कीजिए।

उल्लू मेरी  मोरनी को, कहता निज भामिनी,
स्वामी आप   दया   करें,  मुझपे   पसीजिए।

वक बोला मोर से क्यों, उल्लू से बिगाड़ करे,
दे  दे   उसे  मोरनी  ये,  बैर  काहे   लीजिए।

हंस  छोड़  बगुलों  पे, करोगे  भरोसा   यदि,
धन-धान्य बीबियाँ भी, उल्लुओं को दीजिए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.04.2019
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Thursday, April 11, 2019

751. जा चुनाव ने बदरा फारे (गीत)

751. जा चुनाव ने बदरा फारे (गीत)

जा चुनाव ने बदरा फारे,
अब ये नाहिं जुरैंयाँ।

कोई कहे अली हैं मेरे,
कोई कहे बली हैं।
कोई इनकी जाति बतावै,
बातें यही खली हैं।
ये तो है शुरुआत, कसम से,
रोके नहीं रुकैंयाँ।

धर्म-जाति में बाँट रहे हैं,
आग उगलती बातें,
झूठ लगे वसुधैव कुटुंबकम,
सच हैं केवल जातें,
पता नहीं ये शातिर नेता,
क्या-क्या यहाँ करैंयाँ

कौन देवता कहे लड़ो तुम,
नाम हमारे लेकर,
को अवतारी, को पैगंबर,
ज्ञान गया यह देकर।
मेरी मानो जा नफरत से,
कोई नाहिं तरैंयाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.04.2019
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जा-इस; बदरा- बादल; फारे-फाड़ डाले; जुरैंयाँ-जुड़ने वाले; रुकैंयाँ-रुकने वाला; जातें-जातियाँ; करैंयाँ-करने वाले; तरैंयाँ-तरने वाला।

Wednesday, April 10, 2019

750. रोटी हमको चाहिए (कुंडलिया)

750. रोटी हमको चाहिए (कुंडलिया)

रोटी  हमको  चाहिए,  इसकी  करिये  बात। 

धर्मन-जातन  में  हमें,  काहे  आप  फँसात।

काहे  आप  फँसात, हमें  मंदिर-मस्जिद में।

ले लोगे क्या प्राण, नाथ तुम अपनी जिद में।

भूख  समस्या  बड़ी,  अन्य  बातें  हैं  छोटी। 

मंदिर-मस्जिद  नहीं,  हमें  तो  चहिए  रोटी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.04.2019
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Monday, April 08, 2019

748. पढ़ते-पढ़ते मर गये (कुंडलिया)

748. पढ़ते-पढ़ते मर गये (कुंडलिया)

पढ़ते-पढ़ते मर गये, हम तो सच  का पाठ।
साहब ने सीखा फकत, सोलह  दूनी आठ।
सोलह  दूनी  आठ, ठोंककर  सीना कहते।
झूठ-कपट-छलछंद, इसी को जीना कहते।
हरिश्चन्द्र  बन   गए,  झूठ  वो  गढ़ते-गढ़ते।
रहे मूर्ख  के  मूर्ख, सत्य  हम  पढ़ते-पढ़ते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.04.2019
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Sunday, April 07, 2019

747. उनके ही भगवान हैं (कुंडलिया)

747. उनके ही भगवान हैं (कुंडलिया)

उनके ही  भगवान हैं, उनका पूजा-पाठ।
उनको सब  ऐश्वर्य हैं, उनके  ही हैं  ठाठ।
उनके ही हैं  ठाठ, धर्म  के  जो सौदागर।
लंपट, कामी, दुष्ट, पाप की जो हैं गागर।
पढ़े कसीदे जाँय, यहाँ उनके अवगुन के।
उनके हैं  भगवान, ठाठ  भी  सारे उनके।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.04.2019
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Saturday, April 06, 2019

746. सूखों की इस देह पर (कुंडलिया)

746. सूखों की  इस देह पर (कुंडलिया)

सूखों की  इस देह पर, मोटों का अधिकार।
मारें - पीटें   फूँक   दें, ये  लें   खाल  उतार।
ये  लें  खाल  उतार, इन्हें  सारे  ही  हक हैं।
ये  ही  थानेदार, यहाँ   के   ये   शासक  हैं।
ये  ही  पालनहार, आस  ये  ही भूखों  की।
इनका ही अधिकार, देह पर इन सूखों की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.04.2019
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745.भागी जाती किससे साथ (मुक्तक)

745.भागी जाती  किससे साथ (मुक्तक)

भागी जाती  किससे साथ, अरे बतला देना।
बीननहारी  बीन कपास, तुझे है  क्या लेना।
मर्जी जाऊँ जिसके साथ, तुझे है क्या लेना।
इनकी मेरी एकहि सास, सखी उत्तर ले ना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.04.2019
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Thursday, April 04, 2019

744. जनता जाए भाड़ में (कुंडलिया)

744. जनता जाए भाड़ में (कुंडलिया)

जनता जाए  भाड़ में, क्या करना  है जिक्र।
कैसे अपना  हो भला, बस  ये  ही है फिक्र।
बस ये  ही है फिक्र, अरबपति   कैसे  होऊँ।
लूटन का  सौभाग्य, मिला तो  काहे  खोऊँ।
अपना तो  हर काम, यहाँ  बेखटके  बनता।
देश  भाड़ में  जाय, भाड़  में  जाए जनता।

जनता जाए  भाड़ में, क्या  करना  है जिक्र।
कैसे अपना हो भला, इनको बस यह फिक्र।
इनको बस यह  फिक्र, अरबपति कैसे होएं।
लूटन का  सौभाग्य, मिला  तो  काहे  खोएं।
रोक-टोक के  बिना, काम है  इनका बनता।
देश  भाड़ में  जाय, भाड़  में  जाए  जनता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.04.2019
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743. चरण-वंदना सीख ली (कुंडलिया)

743. चरण-वंदना सीख ली (कुंडलिया)

चरण-वंदना  आ  गयी, सम्मुख  देख  चुनाव।
मलहम  आज  लगात  हैं, देते  थे  जो  घाव।
देते   थे   जो   घाव, हितैषी  आज   बने   हैं।
कल तक  थे  जो  शत्रु, मित्र बन  गए घने हैं।
'अनुपम' कुछ तो सीख, करे अब दंदफंद ना।
तू भी  कर  दे  शुरू, आज  से  चरण-वंदना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.04.2019
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