Sunday, July 30, 2017

388. याद आती रही पायल

388. याद आती रही पायल

कुछ लजाती  सी  सिमटी हुई,
गोरे   पैरों   से    लिपटी   हुई,
मुँह   छिपाती    रही   पायल।

जिसका चेहरा था मन में बसा,
लाख कोशिश  के  छू न सका,
मन   लुभाती    रही    पायल।

ढोल  मृदंग  गुमसुम  थे  सब,
थे  मँजीरे  भी  खामोश  जब,
छनछनाती     रही     पायल।

ये  जमाना  था  चुपचाप जब,
कुछ न कह पाये थे आप जब,
गुनगुनाती      रही      पायल।

गम  में  डूबा  था  सारा  जहां,
था  खुशी  का  न  नामोनिशां,
मुस्कुराती       रही      पायल।

था  खत्म  रोशनी  का  बसेरा,
चाँद-तारों  में  था  बस अंधेरा,
झिलमिलाती    रही    पायल।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2017
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