388. याद आती रही पायल
कुछ लजाती सी सिमटी हुई,
गोरे पैरों से लिपटी हुई,
मुँह छिपाती रही पायल।
जिसका चेहरा था मन में बसा,
लाख कोशिश के छू न सका,
मन लुभाती रही पायल।
ढोल मृदंग गुमसुम थे सब,
थे मँजीरे भी खामोश जब,
छनछनाती रही पायल।
ये जमाना था चुपचाप जब,
कुछ न कह पाये थे आप जब,
गुनगुनाती रही पायल।
गम में डूबा था सारा जहां,
था खुशी का न नामोनिशां,
मुस्कुराती रही पायल।
था खत्म रोशनी का बसेरा,
चाँद-तारों में था बस अंधेरा,
झिलमिलाती रही पायल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2017
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