384. मन में नव उत्साह ले (कुण्डलिया)
मन में नव उत्साह ले, गोरी पकड़ी डोर।
सधकर झूले पे चढ़ी, देखत है चहुँओर।
देखत है चहुँओर, वक्ष निज झाँप रही है।
झूल रही पर नियत, पवन की भाँप रही है।
ऊँची पैग बढ़ाय, विचरती फिरे गगन में।
नव उमंग, उत्साह, कामिनी लेकर मन में।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.07.2017
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