Sunday, July 16, 2017

379. कब तलक ऐसे उड़ाओगे (गीत)

379. कब तलक ऐसे उड़ाओगे (गीत)

कब तलक ऐसे उड़ाओगे,
हमारी  खिल्लियाँ।
नोचते कब तक रहोगे,
जंगली  ज्यों  बिल्लियाँ।

पीठ  से  चिपके  उदर 
आँखें  धँसी  मुख जर्द है,
ये  गरीबी  बेबसी   
लाचारियों  का  दर्द है।
ना  चुकाए  से चुके  यह
किस  तरह  का कर्ज है,
जो  दवा के  साथ  बढ़ता 
कौन  सा  यह  मर्ज है।

भूख-तड़पन को लिए हर
ओर चिल्लम-चिल्लियाँ।।

रोपती   है  धान   को  
हर  ख्वाब  चकनाचूर है,
गाँव   की   हर   लाजवंती  
का   वदन  बेनूर  हैं।
एक  नन्ही   जान  खाली  
पेट  में  पलती  रहे,
श्यामली  सूखी  पथेरन  
जेठ   में  जलती  रहे।

चक्षुओं में आँसुओं की 
जम गयीं हैं सिल्लियाँ।।

इस  तरफ  जूठन  नहीं 
प्याले  में  उनके  खीर  है,
मेरी   कंगाली  किसी  की  
बन  गई  तकदीर  है।
तन जलाकर भी न मिलतीं 
दो  वकत  की रोटियाँ,
आप   कुर्सी   के    लिए   
रहते   बिठाते  गोटियाँ।

हमसे अच्छे हैं  तुम्हारे,
नाथ  पिल्ले - पिल्लियाँ।।

कब  करी  चर्चा  हमारी 
कब  रहे  हम जिक्र  में,
जानते  हैं  हम  सभी  
दुबले हुए  क्यों  फिक्र में।
है  बड़ी  जद्दोजहद   
जीवन  नहीं आसान है,
जानवर अब्बल  यहाँ  
दोयम  हुआ  इंसान  है।

किस तरह अनभिज्ञ हैं  ये 
लखनऊ औ  दिल्लियाँ।।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.07.2017
*****

लूट   में   मशगूल   हैं,
चहुँओर  कुत्ते - बिल्लियाँ।
कब  तलक  उड़ती  रहेगी,
बेबसी  की  खिल्लियाँ।

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