Sunday, July 30, 2017

387. मत हसीनों के बालों में

387. मत हसीनों के बालों में  

मत  हसीनों  के   बालों  में   गूँथो  मुझे।
अब  तमन्ना   नहीं   है   मुझे   हार  की।
मंदिरों  की  भी  चाहत   न  यूं  तो मुझे।
ना ही  है  आरजू  दिल  में  बाज़ार  की।

ऐसे  द्वारों  पे  जाकर  के  मत  टाँगना।
जिनसे  भ्रष्टों  की  रैली  गुजरती  फिरे।
ऐसी गर्दन  की  भी  चाह  मुझको नहीं।
देशहित  में  जो  कटने  से  डरती फिरे।

जो  कि  तूफान  थे, देश  की  शान  थे।
थी ख़्वाहिश न जिनको कफन के लिए।
तोड़कर  फेंकना उस  समाधी  पे  बस।
हँस के  जो मिट गये  हैं वतन  के लिए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2017
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