Saturday, July 15, 2017

378. वर्षा कितनी है सुखद (कुण्डलिया)

378. वर्षा कितनी है सुखद (कुण्डलिया)

वर्षा  कितनी है  सुखद, चलकर देखो गाँव।
घर आँगन जलमग्न हैं, बैठन को नहिं ठाँव।
बैठन को  नहिं  ठाँव, झोपड़ी भीतर  पानी।
एक नहीं दस-बीस, लाख की यही कहानी।
कंगाली  में  कभी, किसी का  मन  है  हर्षा।
बेघर   कैसे   कहें,  सुखद  होती   है   वर्षा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.07.2017
*****


No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.