378. वर्षा कितनी है सुखद (कुण्डलिया)
वर्षा कितनी है सुखद, चलकर देखो गाँव।
घर आँगन जलमग्न हैं, बैठन को नहिं ठाँव।
बैठन को नहिं ठाँव, झोपड़ी भीतर पानी।
एक नहीं दस-बीस, लाख की यही कहानी।
कंगाली में कभी, किसी का मन है हर्षा।
बेघर कैसे कहें, सुखद होती है वर्षा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.07.2017
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