Sunday, July 02, 2017

372. जालिम ने दुपट्टा सरकाकर

372. जालिम ने दुपट्टा सरकाकर

जालिम ने दुपट्टा सरकाकर, जलवों को दिखाकर लूट लिया।
फिर नाज-ओ-अदा से इतराकर, गर्दन को घुमाकर लूट लिया।

इक बार निहारा चौतरफा, धीरे-धीरे, चुपके-चुपके,
फिर मद्य भरे दो नयनों को, नयनों से मिलाकर लूट लिया।

आशा, उत्साह, उमंगों में, आँखों को चार किया जिसने,
जाने फिर क्या सोचा उसने, नजरों को झुकाकर लूट लिया।

सौंदर्य, रूप, लावण्य लिए, उस रूपमती मृगनयनी ने,
इक बार उघारा चंद्रवदन, फिर जुल्फ गिराकर लूट लिया।

दी थाह नहीं निज अंतर की, हृदय का हर पट बंद रखा,
लज्जा, संकोच, रिवाजों को, हथियार बनाकर लूट लिया।

कहती दुनियाँ मासूम जिसे, वो इतनी भी मासूम नहीं,  
जिसने इस भोले-भाले को, बहला-फुसलाकर लूट लिया।

रणवीर सिंह (अनुपम)
02.07.2017
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