386. मेरी मुसीबत को खुद पे ले ले
मेरी मुसीबत को खुद पे ले ले, मुझे वो सीने की तलाश है।
थपेड़े खाकर लड़े भँवर से, उसी सफ़ीने की तलाश है।
हजार लड़ियों के बाद भी इस, जहां में फैला हुआ अँधेरा,
भरे जगत में जो रोशनी को, उसी नगीने की तलाश है।
उसे मंदिरों उसे मस्जिदों, में ढूंढकर भी नहीं पा सका,
न आज काबा न आज काशी, न ही मदीने की तलाश है।
मुझे न भोजन की थालियाँ दो, मुझे महीने का काम दे दो,
वही महीना है पर्व मेरा, उसी महीने की तलाश है।
हजार पुश्तों से है बहाया, तुम्हारी खातिर जो स्वेद मैंने,
मुझे भी रहबर तुम्हारे तन से, उसी पसीने की तलाश है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2017
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