Saturday, July 01, 2017

371. समझाबत भोरहिं शाम रहे (दुर्मिला सवैया)

371. समझाबत भोरहिं शाम रहे (दुर्मिला सवैया)

समझाबत भोरहिं  शाम  रहे, पर  बात सुनी  कब  जोबन में।
जब प्रेम करो तब  काहि डरे,  कछु नाँहि धरो  अब रोबन में।
अबहूँ कछु नाहिं ते'रो बिगरो, अरि काह लगी सब खोबन में।
अनुरागन  रंग  न  छूटत  है, सब  उम्र  लगा  दे'उ  धोबन  में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.06.2017
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