Saturday, November 10, 2018

634. छोड़ो जहां की फिक्र को (गजल)

634. छोड़ो जहां की फिक्र को (गजल)

छोड़ो  जहां  की  फिक्र को, मत चैन खोइए।
होता   है    होने   दीजिए,  चुपचाप   सोइए।

ऐसा अदब किस काम का, गर्दन न उठ सके,
बौनों  के  घर  पे  जाय  के,  बौने  न  होइए।

इंसान  हो   इंसान  से,  इतना  भी  बैर  क्या,
इंसानियत  की   राह   में,  कांटें   न   बोइए।

नफरत से बोलो आज तक, किसका भला हुआ,
नफरत का इतना बोझ मत, इस दिल पे ढोइए।

हर कौम ने  इस  देश  को, दी  हैं  जवानियाँ,
साहब  किसी  भी कौम पर, इतना न  रोइए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.11.2018
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