Saturday, November 10, 2018

632. बदलाव का दौर

632. बदलाव का दौर

मेरी पत्नी को मेरी कुछ चीजों से जैसे भाषा, भोजन, कपड़े, मितव्ययता आदि से बड़ी शिकायत रहती है। वे अक्सर कहती रहतीं हैं कि क्या रोज-रोज वही तीन जोड़ी पेन्ट कमीज बदल-बदलकर पहनते रहते हो। कभी तड़कते-भड़कते जीन्स-टीशर्ट भी पहन लिया करो। अरे अपने आसपास की दुनिया पर भी नजर डाला करो। पिछले दो, तीन साल में कितनी बदल गयी है। तुम भी कुछ अपने आप को बदलो। वैसे भी आजकल तो बदलने का मौसम चल रहा है। कुछ न कुछ रोज बदल रहा है।

अचानक कल पता नहीं उन्हें क्या सूझी, मेरे नाम के पीछे पड़ गईं और कहने लगी कुछ नहीं तो, नाम तो नए जमाने का रख लेते।
कहाँ इसमें इंग, सिंह लगाए घूम रहे हो। न इसे कोई जानता न कोई पहिचानता। ऊपर से झगड़ालू प्रवृत्ति का बोध होता, सो अलग। इसे बदलकर कोई बड़ा सा नाम क्यों नहीं रख लेते। अरे तुम्हारे नाम बदलने में कौन सौ, दो करोड़ का खर्च आएगा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.11.2018
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