Sunday, August 27, 2017

406. जब से' देखा तुम्हें गुनगुनाने लगे (गीत)

406. जब से' देखा तुम्हें गुनगुनाने लगे(गीत)

स्रग्विणी छंद

जब  से'  देखा  तुम्हें  गुनगुनाने लगे।
तेरी' गलियों  के चक्कर लगाने लगे।

आप  समझे  नहीं  मेरे  जज्बात  को,
आप  जाने नहीं  मन के  हालात  को,
दूर   जाना   खुशी   से   चले   जाइये,
सिर्फ  रुक  जाइये आज की रात को।
दिल के हाथों से होकर के मजबूर हम,
जो  है'  दिल  में  तुम्हें  वो बताने लगे।

दे   रहे   हो  सजा  शौक  से  दीजिये,
जो  सही  हो  वही  फैसला  लीजिये,
है   तुम्हारे   हवाले    मेरी'   ज़िन्दगी,
जो  लगे ठीक  वो  ही सनम कीजिये।
आज  फिर  से तुम्हें  हो गया  है क्या,
आज फिर होंठ  क्यों  थरथराने  लगे।

प्रेम  की  राह में गम  के  बादल  घने,
प्रेम   में  धातु   के  चबने  पड़ते  चने,
बात  बिगड़े  तो'  बनती  बनाये  नहीं,
प्रेम  की  बात  वर्षों   में  जाकर  बने।
प्रेम   विश्वास    है,   हर्षोउल्लास   है,
प्रेम   हो   तो   जहां  जगमगाने  लगे।

रणवीर सिह 'अनुपम'
27.08.2017
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.