Saturday, August 26, 2017

405. कैसे सँवरेगी यहाँ (कुण्डलिया)

405. कैसे सँवरेगी यहाँ (कुण्डलिया)

कैसे   सँवरेगी  यहाँ,  नारी   की  तक़दीर।
जब नारी समझे  नहीं, खुद नारी की पीर।
खुद नारी की पीर, सास को याद न रहती।
मारपीट अन्याय, बहू क्या-क्या ना सहती।
पुरुष  नोचते   देह,  गाय  को  कुत्ते  जैसे।
उपदेशों  से   नार,  सुरक्षित   होगी   कैसे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.08.2017
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