405. कैसे सँवरेगी यहाँ (कुण्डलिया)
कैसे सँवरेगी यहाँ, नारी की तक़दीर।
जब नारी समझे नहीं, खुद नारी की पीर।
खुद नारी की पीर, सास को याद न रहती।
मारपीट अन्याय, बहू क्या-क्या ना सहती।
पुरुष नोचते देह, गाय को कुत्ते जैसे।
उपदेशों से नार, सुरक्षित होगी कैसे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.08.2017
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