Sunday, August 13, 2017

397. रात भर करवटें मैं बदलता रहा (गीत)

397. रात भर करवटें मैं बदलता रहा (गीत)

रात भर करवटें मैं बदलता रहा,
और सिसकता रहा, बादलों की तरह।
तू न आई प्रिये, दिल तड़पता रहा,
शाम से भोर तक, दिलजलों की तरह।

तेरे केशों की काली घनेरी लटें,
सिंघु जैसे वो गहरे नशीले नयन।
धूप सी खिलखिलाती वो तेरी हँसी,
चंद्रमुख से वो फूटे सुनहरी किरन।
तन से तेरे लिपट ये  पवन बावली,
छेड़ती थी तुझे मनचलों की तरह।।

गुनगुनाती रहीं मुँह चढ़ाती रहीं,
तेरी गोरी कलाई से चिपटी हुईं।
दिल जलातीं रहीं, मुस्करातीं रहीं,
तेरे हाँथों में कंगन से लिपटी हुईं।
भूल पाता न वो, चूड़ियों की खनक,
ढूँढता फिर रहा, पागलों की तरह।।

तेरे बिन ज़िंदगी है अधूरी मेरी,
क्या बताऊँ कि अब कैसे हालात हैं।
दूरियाँ अब सही मुझसे जाती नहीं,
मुझसे रूठे हुए मेरे दिन-रात हैं।
तू ही आकर बता आज मुझको प्रिये,
कब तलक मैं जिऊँ बावलों की तरह।।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.08.2017
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397A. प्यार जो करतीं प्रिये तो (मुक्तक)
प्यार  जो  करतीं  प्रिये  तो, प्यार की  बातें  करो।
चंद्रवदनी  इस  तरह  मत,  रार   की   बातें  करो।
यह अदा सीखी कहाँ से, आज तक समझा नहीं।
प्यार के  मौसम  में' मत, पतझार की बातें  करो।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.08.2017
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397A. प्रेम जो करतीं प्रिये तो (मुक्तक)
प्रेम जो करतीं  प्रिये तो, प्रेम  की बातें करो।
चंद्रवदनी  इस  तरह  मत,  रार की  बातें करो।
इस तरह  की बेरुखी, अच्छी नहीं मधुमास में।
प्रेम के  मौसम में' मत, पतझार की बातें करो।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.08.2017
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