390. छूती है पवन जब उसका तन (मुक्तक)
छूती है पवन जब उसका तन, पगली हो चलने लगती है।
गुजरे जब वो मैखाने से, साकी भी मचलने लगती है।
जाने कैसा है आकर्षण, सागर सी गहरी आँखों में।
डूबें उछरें फिर डूब जाँय, यह इच्छा पलने लगती है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.08.2017
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