391. जो भी देखे उस कामिन को (मुक्तक)
जो भी देखे उस कामिन को, वह चैन गँवा दे निज मन का।
खा-खाकर गश गिरने लगता, कुछ होश नहीं रहता तन का।
कलियाँ जो निहारें चंद्रवदन, फिर खुद का मुख श्रीहीन लगे।
उपवन में उदासी छा जाती, पुष्पों की हालत दीन लगे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.08.2017
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