404. लोगों ये कैसी अंधभक्ति (मत्त सवैया)
लोगों ये कैसी अंधभक्ति, कैसी ये समझ तुम्हारी है।
कामुक, ढोंगी, व्यभिचारी को,कहते हो तुम ब्रम्हचारी है।
तुमसे तो अच्छे पशु होते, अपना हित अहित समझते हैं।
अंधे होकर वो कभी नहीं, नायक के पीछे चलते हैं।
क्यों निज नयनों को मूँद लिया, क्यों भक्ति हो रही यों अंधी।
क्या बुद्धि बेंच खाई तुमने, क्या की इसकी तालाबंदी।
काहे खल, कामी, दुष्टों के, तुम वशीभूत हो जाते हो।
काहे दुष्कर्मी गुंडों पर, धन-दौलत प्राण लुटाते हो।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.08.2017
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