Sunday, August 06, 2017

395. मित्रता न ऐसा रिश्ता है (मुक्तक)

395. मित्रता न ऐसा रिश्ता है (मुक्तक)

मित्रता  न  ऐसा  रिश्ता  है, जाँचा-परखा अरु जोड़ लिया।
जब तक जी चाहा संग रहे, जब जी चाहा मुख मोड़ लिया।
यह तो  संयोग  दिलों  का है, बनता  जो  अपने आप सखे।
मत  शब्दों  से  परिभाषित  कर, मत प्रज्ञा से तू  नाप सखे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.08.2017
*****
प्रज्ञा-अक्ल, बुद्धि

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.