माता जो आता मुझे, वो तो है तृणभार।
जो मुझको आता नहीं, वो पर्वत उनहार।
वो पर्वत उनहार, पुत्र पर किरपा करिये।
आलोकित पथ करो, मात सब तम को हरिये।
सच को सच लिख सकूँ, रहे सच से ही नाता।
इतनी कृपा करो आज, इस सुत पर माता।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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माता जो आता मुझे, वो तो है तृणभार।
जो मुझको आता नहीं, वो पर्वत उनहार।
वो पर्वत उनहार, पुत्र पर किरपा करिये।
आलोकित पथ करो, मात सब तम को हरिये।
सच को सच लिख सकूँ, रहे सच से ही नाता।
इतनी कृपा करो आज, इस सुत पर माता।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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बताओ एक तो खूबी, करें हम तब वरण लोगो,
तुम्हारे तारने से अब, नहीं होगा तरण लोगो।
जरा सी बात को लेकर, न करिये रोज प्रदर्शन,
करो मत इस तरह अनशन, यहाँ पर आमरण लोगो।
नहीं इतने भी' हैं काबिल, ढिढ़ोरा पीटते जितना,
हकीकत देखिये इनकी, हटाकर आवरण लोगों।
कफ़न, नदियाँ, खदानें, ईंट-पत्थर और ये चारा,
इसी से आजकल करते, उदर का ये भरण लोगो।
सदा से रहनुमा बनकर, बनाते आ रहे हमको,
जरूरत के समय इनने, हमें कब दी शरण लोगो?
दिखा सपने तरक्की के, हमारी नींद भी ले ली,
किया है किस तरह देखो, जमीनों का हरण लोगो।
बिछौना है जमीं मेरी, खुला ये आसमां चद्दर,
मे'रा घर-बार तो बस है, यही वातावरण लोगो।
हितैषी हो नहीं सकते, धरम को बेंचने वाले,
अरे पाखंडियों के तुम, पखारो मत चरण लोगों।
कुटिल, कामुक, दुराचारी, मठों को घेर कर बैठे,
इन्हीने है किया देखो, धरम का ये क्षरण लोगो।
दबाकर शत्रु की गर्दन, चढ़ोगे वक्ष पर जिस दिन,
उसी दिन विश्व से आतंक का होगा मरण लोगों।
न कोई जन्म से ऊँचा, न कोई जन्म से नीचा,
इसे तो तय किया करता, सदा ही आचरण लोगो।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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चुनकर भेजा था जिन्हें, वो बन बैठे भाट।
वोट कीमती दे उन्हें, हाथ लिए हैं काट।। 1
बिकें विधायक शान से, लगी हुई है हाट।
नेता चूसे देश को, पब्लिक बारह बाट।। 2
भूखी जनता, अन्न की, कब से देखे बाट।
वोही खाली पेट है, वोही टूटी खाट।। 3
महलों ने हरदम करी, झोपड़ियों से घाट।
सब कुछ हमरा छीन के, कर दिया बारह बाट।। 4
दूध, दही, धन-सम्पदा, उन्हें महल, रजपाट।
हमको फटी कमीज बस, औ इक टूटी खाट।। 5
सुरा-सुंदरी, दावतें, प्रभु का उन पर हाथ।
भूख-प्यास, बीमारियाँ, सब हरिया के साथ।। 6
सरकारें आईं गयीं, सकी न बेड़ी काट।
दूरी राजा रंक की, नहीं सकी वो पाट।। 7
रणवीर सिंह (अनुपम)
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सुलगती आग जल जाती, अगर थोड़ी हवा होती,
नहीं यों खेलती दिल से, अगर थोड़ी वफा होती,
नहीं शिकवा, शिकायत न, मुझे अपने, पराओं से,
तेरी नफरत छुपा लेता, अगर थोड़ी जगह होती॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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नैतिकता, आदर्श मिट गए, अब आधुनिक जमाने में।
नेकी और ईमान बिक गए, अपना काम चलाने में॥
मुगल हुमायूँ-कर्णवती से, रिश्ते कौन बनाता अब,
नर-नारी आधुनिक हो रहे, ये नहिं उन्हें सुहाता अब,
कैसे - कैसे काम हो रहे, कारोबार चलाने में॥
नया जोश अब, नई उमंगें, नई सभ्यता है आई,
आज सभ्य लोगों ने ली है, नंगे होकर अँगड़ाई,
क्या-क्या मिले देखने को अब, यारो नए जमाने में॥
आज जवानी बनी हुई है, पर्दों का बस आकर्षन,
आज खुली जंघाएं लेकर, इठलाता फिरता यौवन,
यौवन गर्वित हुआ झूमता, अपनी देह दिखाने में॥
टुन्न चमेली पौआ पीकर, मुन्नी भी बदनाम फिरे,
अरु मुन्नी वो काम कर रही, जो न झंडू बाम करे,
पर्दे पर यों दिखें नारियाँ, आती लाज बताने में॥
नंगे होकर ट्रांजिस्टर संग, आमिर खाँ प्रचार करे,
वस्त्र त्यागकर आज सभ्यता, लोगों को हुशियार करे,
जिस्मों का उपयोग हो रहा, अब बाजार बढ़ाने में॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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गीत (16/14)
संस्कार आदर्श मिट गए,
अब इस नए ज़माने में।
नेकी औ ईमान बिक गए,
अपना काम चलाने में॥
नया जोश अब, नई उमंगें,
नई सभ्यता है आई,
आज सभ्य लोगों ने ली है,
नंगे होकर अँगड़ाई।
क्या-क्या मिले देखने को अब,
यारो नए जमाने में॥ 1
आज जवानी बनी हुई है,
पर्दों का बस आकर्षन।
आज खुली जंघाएं लेकर,
इठलाता फिरता यौवन।
यौवन गर्वित हुआ झूमता,
अपनी देह दिखाने में॥ 2
टुन्न चमेली पौआ पीकर,
मुन्नी भी बदनाम फिरे,
औ मुन्नी वो काम कर रही,
जो न झंडू बाम करे।
पर्दे पर यों दिखें नारियाँ,
आती लाज बताने में॥ 3
नंगे होकर ट्रांजिस्टर संग,
आमिरखाँ प्रचार करे,
वस्त्र त्यागकर आज सभ्यता,
लोगों को हुशियार करे।
जिस्मों का उपयोग हो रहा,
अब बाजार बढ़ाने में॥ 4
रणवीर सिंह (अनुपम)
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दूर से आँखें मिलाकर लूट लिया।
मिले तो नज़रें झुकाकर लूट लिया।
पहले तो जलवा दिखाया हुश्न का,
और फिर जुल्फें गिराकर लूट लिया।
पास पहुँचे तो शिकायत ही मिली,
जब चले तो मुस्कराकर लूट लिया।
इतने से जब दिल नहीं उनका भरा,
नींद में नींदों को आकर लूट लिया।
जंगलों में जो लुटे वे और हैं,
मुझको तो घर पर बुलाकर लूट लिया।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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144. वो जमाले हुश्न उनका (मुक्तक)
वो जमाले हुश्न उनका, और अंदाजे कलाम।
वो तबुस्सुम, वो झुका सिर, और वो उनका सलाम।
लय पकड़ना नृत्य का वो, थिरकना मृदंग पर।
खत्म होकर भी है लगता, उनका रक्से नातमाम।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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रक्स= नृत्य,
नातमाम=अपूर्ण, ख़त्म न हुआ हो, संपन्न न हुआ हो
जब भी गुजरा कोई दिल से, रहगुज़र बनती रही,
राहबर बनके हमारी, ज़िंदगी जलती रही,
गम-ए-गेती, गम-जनानां और कंगाली का गम,
दर्द सीने में दफन कर, ज़िंदगी चलती रही॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
गम-ए-गेती= दुनियाँ का गम
गम-जनानां= प्रेमिका का गम
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सौभाग्य अगर द्वार पर, दस्तक दे एक बार।
उस वक्त शीघ्र उसका, सत्कार होना चाहिए।
दुर्भाग्य अगर द्वार पर, आए जो बार, बार।
हर बार पूरे ज़ोर से, प्रतिकार होना चाहिए।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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फिलहाल यही है
जिंदगी इक राग है, सुर-ताल यही है,
कभी यह तलवार, कभी ढाल यही है॥
जीवन है एक नेमत, जीवन हसीन है,
फिर भी किसी की जान का, जंजाल यही है॥
आगे का किसने देखा, आगे क्या पता,
आगे की बात छोड़िए, इस साल यही है॥
आना जो चाहो आइए, मर्जी है आप की़,
जीने के लिए जो है, फिलहाल यही है॥
होंठों को जिसने चूमा, गालों को छुआ है,
हाथों में सजता जो रहा, रूमाल यही है॥
गोरी बिचारी गाँव की, रंग-रूप ढक रही,
उस नासमझ को क्या पता, टकसाल यही है॥
आदर्श, नेकनियती, 'अनुपम' की जिंदगी,
लालच के हाथों न गली, वो दाल यही है॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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जुल्फ से पानी की बूँदें किस तरह,
लिपट कर इतरा रहीं हैं भाग्य पर।
अगले पल की कुछ खबर इनको नहीं,
तौलिए से जब कोई देगा मिटा।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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मापनी-1222 1222 1222 1222
ते'रे होंठों पे' लिख सकता, ते'रे गालों पे' लिख सकता।
कई मुक्तक प्रिये तुझ पर, ते'रे बालों पे' लिख सकता।
इसे लिखने को दुनियाँ में, हजारों लोग बैठे हैं।
अकेला सिर्फ मैं हूँ जो, तेरे छालों पे' लिख सकता।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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इस तरह मत दूर जाकर बैठिये।
बैठना तो पास आकर बैठिये।।
सामने जब आ गए तो अर्ज है,
आज तो पर्दा उठाकर बैठिये।।
यूँ हमेशा छोटी' छोटी बात पर,
गुलबदन मत, मुँह फुलाकर बैठिये।।
हर किसी की बात को दिल पर न लो,
और मत दिल से लगाकर बैठिये।।
गैर की नापाक हरकत के लिये,
आप मत दिल को दुखाकर बैठिये।।
रंज, गम हम से छुपाने के लिए,
इस तरह मत मुस्कराकर बैठिये।।
यह मुनासिब आप को बिलकुल नहीं,
हर किसी के पास जाकर बैठिये।।
जानता हूँ पर न इतना जानता,
हाथ कंधे से हटाकर बैठिये।।
एक दिन चहुँओर होगी रोशनी,
प्रेम अंतर में जगाकर बैठिये।।
जो सभा में कद बढ़ाना चाहते,
यह गुरूर-ए-कद घटाकर बैठिये।।
धर्म औ तहजीब के नामों पे' मत,
आस्तीनों को चढ़ाकर बैठिये।।
आ मिले जब नेक मकसद के लिए,
दूरियों को अब मिटाकर बैठिये।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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करवा चौथ
सारा दिन निराहार, घर के करे है कार,
चारो ओर प्रीत रूपी, मधु को है घोलती।।
मुखड़े पे हास लिए, आस औ विश्वास लिए,
मन में उमंग लिए, हँसती है बोलती।।
सजधज हो तैयार, करके सभी श्रृंगार,
मन में पिया की छवि, खुश हो के डोलती।।
मॉंग ये सिंदूरी रहे, पति से न दूरी रहे,
चाँद को निहार कर, भीष्म व्रत खोलती।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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