524. आज रहबर हैं चुपचाप बैठे हुए
आजकल उद्योगपति जनता की अरबों की कमाई डकार कर, बड़े आराम से विदेश भाग जाते हैं, इसे देखकर ऐसा लगता है कि इनने अमीर बनने का एक बेहद आसान तरीका खोज लिया है। वर्तमान परिदृश्य देखकर लगता है कि यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। इसी पर गंगोदक सवैया (212 *8) के वाचिक भार पर आधारित, एक मुक्तक।
524. आज रहबर हैं चुपचाप बैठे हुए
आज रहबर हैं चुपचाप बैठे हुए, कोई मसलों पे करता नहीं गौर है।
जो है जितना बड़ा ठग-लुटेरा यहाँ, वो ही नामीगिरामी है शिरमौर है।
जिनको पकड़ा गया छोटे-मोटे हैं ठग, इनके पीछे असल ठग कोई और है।
देश का धन निबल की लुगाई सा है, लूट लो लूट लो लूट का दौर है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.02.2018
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निबल-दुर्बल, कमजोर
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