Wednesday, February 14, 2018

515. जटा बीच गंगा साजे (घनाक्षरी)

515. जटा बीच गंगा साजे (घनाक्षरी)

जटा  बीच  गंगा साजे, भाल  चन्द्रमा  विराजे,
कर  में   त्रिशूल   सोहे,  कंठ  नाग  माला  है।

अविनाशी आदि हैं जो, स्वयं भू अनादि हैं जो,
तन  पे   भभूति   सोहे,  कटि   मृगछाला   है।

प्राणियों  के प्राणाधार, सृष्टि  के  हैं  मूलाधार
देवों   में   हैं   महादेव,   रूप    मतवाला   है।

सम्मुख हैं  गौरा  प्रिये,  मन   में   उमंग  लिए,
दोनों  का   ये  परिणय,  जग  में   निराला  है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.02.2018
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