513. कुत्ता फैलाते फिरें (कुण्डलिया)
कुत्ता फैलाते फिरें, अंधे पीसें चून।
ना आटा ना पा सके, तेल लकड़ियाँ नून।
तेल लकड़ियाँ नून, इसी में खपती जनता।
मेहनतकश रो रहे, काम चमचों का बनता।
काटे, भूने, जाँय, बने इनका ही भुत्ता।
अंधे पीसें चून, मजे से खायें कुत्ता।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.02.2018
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