Friday, February 09, 2018

512. काने अंधे देखकर (कुण्डलिया)

512. काने अंधे देखकर (कुण्डलिया)

काने   अंधे   देखकर,  फूले   नाँय   समाँय।
सोचें  हमरी  एक  नहिं,  इनकी  दोनों नाँय।
इनकी दोनों  नाँय, और  बन  बैठे  मुखिया।
रोजहिं जश्न मनाय, इन्हें नहिं दीखे दुखिया।
कभी  देंय  उपदेश,  कभी  लगते  गरियाने।
अंधों  पर  चहुँओर,  राज अब  करते काने।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.02.2018
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.