Saturday, February 03, 2018

507. तुमने सागर बनना सीखा (सार छंद)

507. तुमने सागर बनना सीखा (सार छंद)

तुमने सागर बनना सीखा, हमने शीतल झरना।
तुमने हमें  मारना सीखा, हमने तुम  पर  मरना।
तुमने  पीड़ा  देना  सीखा,  हमने  पीड़ा  हरना।
तुमने घाव कुरेदन सीखा, हमने  इनको भरना।

हमने बात  निभानी सीखी, तुमने  बातें करना।
हमने प्राण  गँवाना सीखा, तुमने सीखा डरना।
हमने पर  फैलाना सीखा, तुमने  इन्हें कुतरना।
हमने देश  बनाना  सीखा, तुमने सीखा चरना।

हम चुप हैं औ जहर उगलती, रहती तुम्हरी रसना।
हम पर  तुम्हरी  सौ पावंदी, गुंडों  पर  है  बस  ना।
हमने  गले  लगाना सीखा, तुमने  हमको  कसना।
हमने दूध  पिलाना  सीखा, तुमने  हमको  डसना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.02.2018
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507. मोर मोरनी सोचते (कुण्डलिया)

मोर  मोरनी  सोचते, भाग  चलें  कहिं  और।
अब  कौओं  का दौर है, हंसों को  नहिं ठौर।
हंसों को  नहिं ठौर, उल्लुओं  का  है जलवा।
गिद्ध-चील  चहुँओर, कर रहे हैं  नित बलवा।
रोजहिं  एक न  एक, लाश  पड़ती  बटोरनी।
किस  जंगल  में  जाँय, सोचते  मोर  मोरनी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.02.2018
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