Sunday, February 25, 2018

529. व्याकुल अंबर दीखता (कुण्डलिया)

529. व्याकुल अंबर दीखता (कुण्डलिया)

व्याकुल अंबर  दीखता, जाग  रहा  अनुराग।
और  धरा  सजने लगी,  जब से आया फाग।
जब से  आया  फाग,  फूल  पर  भौंरे  डोलें।
कलियाँ  लाज बिसार, स्वयं घूँघट पट खोलें।
रंग-रूप अनुराग, देख  सब जग  है आकुल।
जब से आया फाग, दिखे यह अंबर व्याकुल।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.02.2018
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Friday, February 23, 2018

527. ईश्वर के ठेके उठें (कुण्डलिया)

527. ईश्वर के ठेके उठें (कुंडलिया)

ईश्वर    के    ठेके    उठें,    ईश्वर    का   पेटेंट।
अलग-अलग  कैटेगरी,  अलग-अलग   पेमेंट।
अलग-अलग पेमेंट, वीआईपी पंक्ति अलग है।
अंधभक्ति   से  ग्रस्त,  त्रस्त   बौराया  जग  है।
चरणपादुका, यंत्र,  मूर्ति  बिकते  हरि-हर  के।
अरबों   की   लुटपाट,  करें   दल्ले   ईश्वर  के।
जिधर   देखिए   उधर,  उठें   ठेके   ईश्वर  के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.02.2918
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Tuesday, February 20, 2018

524. आज रहबर हैं चुपचाप बैठे हुए

524. आज रहबर हैं चुपचाप बैठे हुए

आजकल उद्योगपति जनता की अरबों की कमाई डकार कर, बड़े आराम से विदेश भाग जाते हैं, इसे देखकर ऐसा लगता है कि इनने अमीर बनने का एक बेहद आसान तरीका खोज लिया है। वर्तमान परिदृश्य देखकर लगता है कि यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। इसी पर गंगोदक सवैया (212 *8) के वाचिक भार पर आधारित, एक मुक्तक।

524. आज रहबर हैं चुपचाप बैठे हुए

आज  रहबर  हैं  चुपचाप  बैठे  हुए, कोई  मसलों पे   करता   नहीं   गौर  है।
जो  है   जितना  बड़ा   ठग-लुटेरा   यहाँ,  वो  ही   नामीगिरामी है शिरमौर है।
जिनको पकड़ा गया छोटे-मोटे हैं ठग, इनके पीछे  असल  ठग   कोई  और है।
देश का  धन  निबल  की  लुगाई  सा है,  लूट  लो   लूट  लो  लूट  का  दौर  है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.02.2018
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निबल-दुर्बल, कमजोर

Saturday, February 17, 2018

522. होटल में वे मौज से (कुण्डलिया)

2200 करोड़ का पीएनबी घोटाले के बाद विदेश भागने के बाद।

522. होटल में वे मौज से (कुण्डलिया)

होटल में  वे मौज से, जीवन  रहे  गुजार।
जनता का  धन लूटकर, करके  बंटाधार।
करके  बंटाधार,  देश  का   चले  गये  हैं।
आज पुनः भारतवासी, फिर छले गये हैं।
हम सब उलझे हुए, यहाँ उनके टोटल में।
जीवन  रहे  गुजार, मजे  से  वे होटल में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.02.2018
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521. बाप बनाया हर गधा (कुण्डलिया)

521. बाप बनाया हर गधा (कुण्डलिया)

बाप  बनाया  हर गधा, पर नहीं बदला वक्त।
गधे  काम  ना आ  सके,  होकर रहे  विरक्त।
होकर रहे  विरक्त, जाति  अपनी दिखलायी।
फर्ज  भूलते  रहे,  शर्म  इनको   नहिं  आयी।
काम गया जब निकल, काम कोई ना आया।
हर  चुनाव  पर  यार, गधों  को  बाप बनाया।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.02.2018
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520. पत्नी ने पति से कहा (कुण्डलिया)

520. पत्नी ने पति से कहा (कुण्डलिया)

पत्नी ने  पति से कहा, करत न  उतना  प्यार।
पहले  तो   हर   बात  पर,   रहते  थे   तैयार।
रहते   थे   तैयार,  आप  दिन  रात  मरत  थे।
हर फरमाइश पिया, पूर्ण तुम  तुरत  करत थे।
तब पति  ने मुस्काय, कहा ओ भोली सजनी।
पास  होन   के  बाद,  कौन  पढ़ता  है  पत्नी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.02.2018
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519. कलुआ मलुआ से कहे (कुण्डलिया)

519. कलुआ मलुआ से कहे (कुण्डलिया)

कलुआ मलुआ से कहे, मिलियो है इक काम।
रुपया  मिलिहैं  रोज  सौ,  बुलवें   है  श्रीराम।
बुलवें   है   श्रीराम,  जोर   से   है   चिल्लाना।
पकड़   तिरंगा  हाथ,  रोज  उत्पात   मचाना।
वैसे  भी  बिन  काम,  यार   बैठे   हैं  ठलुआ।
चलो यही कर लेंय, कहे  मलुआ  से कलुआ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.02.2018
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मिलियो -मिल गया;
ठलुआ-बेकार, बिना काम के

518. क्यों आखिर चहुँओर है (कुण्डलिया)

पिछले चार वर्षों में गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में मुस्लिमों और दलितों की हत्याओं और उन पर हो रही अत्याचार की घटनाओं में बाढ़ आ गयी है। अत्याचारियों और गुंडों को प्रशासन का कोई भय नहीं है प्रशासन।

हाल ही में 11फरवरी 2018 को उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद शहर के कालिका रेस्टोरेंट में इलाहाबाद डिग्री कालेज में एलएलबी कर रहे एक दलित छात्र, दिलीप सरोज की कुछ सवर्ण छात्रों ने सरेआम ईंटों डंडों से पीट-पीटकर बेरहमी से हत्या कर दी। ऐसी घटनाएं बार-बार हो रहीं हैं और सरकारें चुपचाप मूकदर्शक बनी रहकर पुलिस कार्यवाही का ढिढोरा पीटती रहती हैं।

518. क्यों आखिर चहुँओर है (कुण्डलिया)

क्यों  आखिर  चहुँओर  है, हत्याओं  का दौर।
मुस्लिम-दलितों के लिए, नहीं  सुरक्षित  ठौर।
नहीं  सुरक्षित  ठौर, जुल्म  क्यों  इन पर होते।
हुक्मरान   चुपचाप,  मजे  से   घर   में  सोते।
को  प्रश्रय   दे  रहा,  बढ़  रहीं  घटनाएं  क्यों।
कमजोरों  की  रोज,  हो   रहीं   हत्याएं  क्यों।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.02.2018
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Wednesday, February 14, 2018

517. प्रेम चौदश के दिवस पर

517. प्रेम चौदश के दिवस पर

वेलेंटाइन डे पर, एक गीतिका छंद।

प्रेम चौदश के दिवस पर, होश में रहना सखे।
मान जा इस वर्ष मत तू, प्रेम का प्याला चखे।
देखना फिर हाल तेरा, क्या करे  बजरंग दल।
प्रेमिका के संग जो, बैठा हुआ  तुझको लखे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.02.2018
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516. साजें गंगा शीश पर (कुण्डलिया)

516. साजें गंगा शीश पर (कुण्डलिया)

साजें  गंगा  शीश पर,  तन पर सजे भभूति।
भाल चन्द्रमा सज रहा, देत सुखद अनुभूति।
देत  सुखद   अनुभूति,  वाम  में  पार्वती  हैं।
प्रथम  भामिनी  रहीं,  पूर्व  में  रहीं  सती हैं।
चिमटा, ढोल, मृदंग,  खंजड़ी, तबला  बाजें।
शिवजी  गौरी  संग, आज हर  उर में  साजें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.02.2018
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515. जटा बीच गंगा साजे (घनाक्षरी)

515. जटा बीच गंगा साजे (घनाक्षरी)

जटा  बीच  गंगा साजे, भाल  चन्द्रमा  विराजे,
कर  में   त्रिशूल   सोहे,  कंठ  नाग  माला  है।

अविनाशी आदि हैं जो, स्वयं भू अनादि हैं जो,
तन  पे   भभूति   सोहे,  कटि   मृगछाला   है।

प्राणियों  के प्राणाधार, सृष्टि  के  हैं  मूलाधार
देवों   में   हैं   महादेव,   रूप    मतवाला   है।

सम्मुख हैं  गौरा  प्रिये,  मन   में   उमंग  लिए,
दोनों  का   ये  परिणय,  जग  में   निराला  है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.02.2018
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Sunday, February 11, 2018

514. पकड़ तिरंगा हाथ में (कुण्डलिया)

514. पकड़ तिरंगा हाथ में (कुण्डलिया)

पकड़ तिरंगा  हाथ में,  नचा रहे  पिस्तौल।
मारपीट  लुटपाट, का बना  रखा  माहौल।
बना रखा  माहौल, सभी  को  हैं धमकाते।
गाली  और  गलौज,  तमंचों  को  लहराते।
मचा  रखा आतंक, करें  सड़कों  पर दंगा।
फटफटिया पर बैठ, हाथ में पकड़ तिरंगा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.02.2018
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Friday, February 09, 2018

513. कुत्ता फैलाते फिरें (कुण्डलिया)

513. कुत्ता फैलाते फिरें (कुण्डलिया)

कुत्ता    फैलाते    फिरें,    अंधे   पीसें   चून।
ना आटा  ना  पा सके, तेल  लकड़ियाँ  नून।
तेल लकड़ियाँ  नून, इसी में  खपती जनता।
मेहनतकश  रो रहे, काम चमचों  का बनता।
काटे,  भूने,  जाँय,  बने   इनका   ही  भुत्ता।
अंधे   पीसें   चून,   मजे   से   खायें   कुत्ता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.02.2018
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512. काने अंधे देखकर (कुण्डलिया)

512. काने अंधे देखकर (कुण्डलिया)

काने   अंधे   देखकर,  फूले   नाँय   समाँय।
सोचें  हमरी  एक  नहिं,  इनकी  दोनों नाँय।
इनकी दोनों  नाँय, और  बन  बैठे  मुखिया।
रोजहिं जश्न मनाय, इन्हें नहिं दीखे दुखिया।
कभी  देंय  उपदेश,  कभी  लगते  गरियाने।
अंधों  पर  चहुँओर,  राज अब  करते काने।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.02.2018
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Tuesday, February 06, 2018

511. चाहें हम क्यों, क्यों कहें (कुण्डलिया)

मेरी समझ में यह नहीं आता कि भारत को ज़िंदाबाद कहने कि बजाय कुछ लोग पाकिस्तान को मुर्दाबाद कहने और कहलवाने की पीछे क्यों पड़े हैं? अच्छा यही है कि हम भारत जिंदाबाद कहें। दूसरे देश को गालियां देने को देशभक्ति नहीं कहा जा सकता है।

अपनी खामियों को छुपाने के लिए, टीवी पर पड़ोसी देश को गालियाँ देना एक घटिया बौद्धिक सोच का प्रदर्शन है। हमारे पास विश्व की एक बेहतरीन सेना है। देशहित में जो करना हो हमें करना चाहिए।

हमें यह भी सोचना होगा कि हमारे लिए महत्वूवर्ण यह है कि हमारा एक भी जवान शहीद न हो, या यह कि हमें एक के बदले दुश्मन के दस सिर चाहिए। क्या एक के बदले शत्रु के दस शीश हमारे शहीद हुए सैनिकों के परिवारों को सांत्वना प्रदान कर सकते हैं?

511. चाहें हम क्यों, क्यों कहें (कुण्डलिया)

चाहें हम क्यों, क्यों कहें, पाक को' मुर्दाबाद।
अच्छा  हो  हम  यह कहें, भारत  ज़िंदाबाद।
भारत   ज़िंदाबाद,   रहा   है    और   रहेगा।
कुशल  होय  चहुँओर, हमेशा  यही  कहेगा।
"दो के बदले बीस", राग यह  क्यों गायें हम।
एक  न  हो  बलिदान, हमारा  ये  चाहें  हम।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.02.2018
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Saturday, February 03, 2018

507. तुमने सागर बनना सीखा (सार छंद)

507. तुमने सागर बनना सीखा (सार छंद)

तुमने सागर बनना सीखा, हमने शीतल झरना।
तुमने हमें  मारना सीखा, हमने तुम  पर  मरना।
तुमने  पीड़ा  देना  सीखा,  हमने  पीड़ा  हरना।
तुमने घाव कुरेदन सीखा, हमने  इनको भरना।

हमने बात  निभानी सीखी, तुमने  बातें करना।
हमने प्राण  गँवाना सीखा, तुमने सीखा डरना।
हमने पर  फैलाना सीखा, तुमने  इन्हें कुतरना।
हमने देश  बनाना  सीखा, तुमने सीखा चरना।

हम चुप हैं औ जहर उगलती, रहती तुम्हरी रसना।
हम पर  तुम्हरी  सौ पावंदी, गुंडों  पर  है  बस  ना।
हमने  गले  लगाना सीखा, तुमने  हमको  कसना।
हमने दूध  पिलाना  सीखा, तुमने  हमको  डसना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.02.2018
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507. मोर मोरनी सोचते (कुण्डलिया)

मोर  मोरनी  सोचते, भाग  चलें  कहिं  और।
अब  कौओं  का दौर है, हंसों को  नहिं ठौर।
हंसों को  नहिं ठौर, उल्लुओं  का  है जलवा।
गिद्ध-चील  चहुँओर, कर रहे हैं  नित बलवा।
रोजहिं  एक न  एक, लाश  पड़ती  बटोरनी।
किस  जंगल  में  जाँय, सोचते  मोर  मोरनी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.02.2018
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Thursday, February 01, 2018

506. जाति जाति में जाति है (कुण्डलिया)

संत शिरोमणि गुरु रविदास, जो जातिपाँति, छुआछूत और पाखंड के प्रबल विरोधी रहे और तत्कालीन समाज में समानता का बीजारोपण करते रहे और जिनके उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, को उनके जन्मदिवस पर शत-शत नमन।

उनकी महानता का इससे भी पता चलता है कि जिस दौर में छुआछूत चरम पर थी, महान संत मीराबाई ने तथाकथित उच्चवर्णों के अन्य संतों को छोड़कर, उन्हें अपना गुरु माना।

उनके एक दोहा जो जातिप्रथा पर करारा प्रहार करता है, का सहारा लेकर बनाई गई कुण्डलिया, उन्हें श्रद्धासुमन के रूप में अर्पित है।

506. जाति जाति में जाति है (कुण्डलिया)

जाति  जाति   में  जाति  है, ज्यों  केले  के पात।
मनुज मिले, रैदास नहिं, जब तक जाति न जात।
जब  तक  जाति  न  जात,  न उपजे भाई-चारा।
ऊँच - नीच    का   रोग,  देश   खा  जाए  सारा।
कुछ ना हासिल हुआ, आज तक  जातिपाति में।
कब  तक  बँटे रहेंगे  हम  सब, जाति  जाति  में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
31.01.2018
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