Thursday, March 28, 2019

741. झूठ हमेशा झूठ है (कुंडलिया)

741. झूठ  हमेशा  झूठ  है (कुंडलिया)

झूठ   हमेशा   झूठ  है, गले  न  इसकी  दाल।
चाहे   जितनी   देर   तू,  पगले   इसे  उबाल।
पगले इसे उबाल, आग  कितनी  भी भड़का।
कभी न आये स्वाद, लगा कितना भी तड़का।
कोंपल,  पात  विहीन, रहे  ज्यों  ठूँठ  हमेशा।
बदसूरत,  बदरंग,  दिखे   त्यों   झूठ   हमेशा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.03.2019
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