741. झूठ हमेशा झूठ है (कुंडलिया)
झूठ हमेशा झूठ है, गले न इसकी दाल।
चाहे जितनी देर तू, पगले इसे उबाल।
पगले इसे उबाल, आग कितनी भी भड़का।
कभी न आये स्वाद, लगा कितना भी तड़का।
कोंपल, पात विहीन, रहे ज्यों ठूँठ हमेशा।
बदसूरत, बदरंग, दिखे त्यों झूठ हमेशा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.03.2019
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