727. कुछ दोहे:
चुनकर भेजा था जिन्हें, वे बन बैठे भाट।
वोट कीमती दे उन्हें, हाथ लिए हैं काट।।
बिकें विधायक शान से, लगी हुई है हाट।
नेता चूसे देश को, पब्लिक बारह बाट।।
भूखी जनता, देश की, कब से देखे बाट।
वो ही खाली पेट है, वो ही टूटी खाट।।
महलों ने हरदम करी, झोपड़ियों से घाट।
सब कुछ इनका छीन के, कर दिया बारह बाट।
दूध, दही, धन-सम्पदा, उन्हें महल, रजपाट।
हमको फटी कमीज नहिं, ना ही टूटी खाट।
सुरा-सुंदरी, दावतें, प्रभु का उन पर हाथ।
भूख-प्यास, बीमारियाँ, सब हरिया के साथ।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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सरकारें आईं गयीं, सकीं न बेड़ी काट।
दूरी राजा रंक की, नहीं सकीं ये पाट।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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जीवन भर जूझत रहा, लेकर खाली पेट।
मरते लाखों का हुआ, उसके शव का रेट।
जिंदों की है कद्र नहिं, मुर्दों का है रेट।
रहबर ही इस देश के, आधा लेंय समेट।
जिनकी छप्पन भोग से, रोजहिं सजती प्लेट।
वे उनके हमदर्द हैं, जिनके खाली पेट।
तब भी खाली पेट था, अब भी खाली पेट।
अपने-अपने कार्य पर, सभी लगाओ ध्यान।
किसका क्या कर्तव्य है, सबको है यह भान।
तुम बिन सूनी सेज यह, चुभती है ज्यों खार।
सूना है घर आँगना, सूना सब संसार।
कंगन, झुमका, चूड़ियाँ, गुमसुम हर श्रृंगार।
विरहन पिय की आस में,पथ को रही निहार।
निर्दोषों को कत्ल कर, रहा मनाता जश्न।
अब रिरियाता फिर रहा, देख दुर्दशा, हश्न।
छोटी सी हुंकार से, हुए सैकड़ों ढेर।
आज समझ में आ गया, क्या कर सकता शेर।
स्वच्छता पर तीन दोहे सभी गुणीजनों की प्रतिक्रिया हेतु।
देश स्वच्छ, सुंदर बने, ऐसा हो संकल्प।
स्वच्छ आचरण का सखे, होता नहीं विकल्प।
केरल या कश्मीर हो, असम होय या कच्छ।
नदियाँ नाले नालियाँ, गाँव नगर हों स्वच्छ।
मन में हो कालिख नहीं, समदर्शी हो दृष्टि।
यही ईश से कामना, सुंदरतम हो सृष्टि।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.02.2019
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06.03.2019, बुधवार को उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर जिले के कलक्ट्रेट पर हुई एक मीटिंग में भाजपा के एक सांसद, श्री शरद त्रिपाठी द्वारा उन्हीं की पार्टी के एक विधायक, श्री राजेश बघेल को सरेआम जूतों से की गयीं पिटाई की घटना पर, यह दोहा।
बड़े काम की चीज है, जूता मेरे मित्र।
प्रतिद्वंदी के गाल का, तुरत बिगाड़े चित्र।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.03.2019
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भले हुए कब राम के, शासक, सेवक, संत। स्वार्थ साधने में लगे, नेता और महंत।
शीश ओखली में दिया, फिर काहे की फिक्र।
उखली में सिर दे दिया, फिर काहे की फिक्र।
क्या मोटा, पतला क्या, क्या चोटों का जिक्र।
बड़ी-बड़ी बातें सुनी, तुम्हरे मुख से मित्र।
जूतों ने बतला दिया, चहरा, चाल, चरित्र।
जूता जूते से कहे, भ्रात रहो तैयार।
स्वामी जाने किस घड़ी, बना लेंय हथियार।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.03.2019
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नारी जीवनदायनी, गतिमय रखे जहान।
पुरुषों से कमतर नहीं, नारी का अस्थान।
नारी में नवरस बसें, सकल गुणों की खान।
नारी से नर ऊपजे, नारी जाति महान।
नारी अबला समझकर, कभी करो मत भूल।
नारी दुर्गा, कालिका, नारी नर का मूल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.03.2019
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आजादी पाए हमें, गुजरे सत्तर साल।
भूख प्यास ना मिट सकी,मन में यही मलाल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2019
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जब से बालू पर लिखा, प्रिये तुम्हारा नाम।
लहरें आ-आ देखतीं, भूल गयीं हर काम।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
13.03.2019
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ऊँचनीच कुल-गोत्र का, धर्म-जाति का खेल।
अव्वल-दोयम का यहाँ, फिर कैसे हो मेल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
13.03.2019
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भाषा भाषण भाष्य का, क्यों इतना अपकर्ष।
परनिंदा आठों पहर, नेता करत सहर्ष।
कथनी करनी सोच में, क्यों कोसों का फर्क।
भाषा में अपकर्ष क्यों, क्यों यह तर्क-वितर्क।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.03.2019
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डेढ़ अक्ल थी विश्व में, कहता मेरा यार।
एक खुदा ने दी उसे, आधे में संसार।
अक्ल डेढ़ तोला बनी, कहता मेरा यार।
एक खुदा ने दी उसे, आधे में संसार।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.03.2019
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