Friday, March 15, 2019

726. सागर ढिग जब से प्रिये (कुंडलिया)

726. सागर ढिग जब से प्रिये (कुंडलिया)

सागर  ढिग  जब से  प्रिये, खींचा  तुम्हरा चित्र।
तब से है व्याकुल जलधि, हालत दिखे विचित्र।
हालत  दिखे   विचित्र, उछालें  भरता  तब  से।
तब से  मन  उद्विग्न, चैन  नहिं  धरता  तब  से।
रूपसिंधु  में   डूब, भरे  निज   लोचन - गागर।
डूब - डूबकर    और,   डूबना    चाहे    सागर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.03 2019
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