Wednesday, November 01, 2017

436. यह किसी की है नहीं आलोचना (गीत)

436. यह किसी की है नहीं आलोचना (गीत)

यह किसी की है नहीं आलोचना,
कर्म मेरा गंदगी को पोंछना।

घूमते हैं, बंद वो आँखें करें,
राह के पत्थर, उठाते हम फिरें,
मन में डर हरवक्त रहता है यही,
मखमली पैरों में आए मोंच ना।

हुश्न का जेवर छुपाकर राखिए,
अधखुले आँचल को अपने ढांकिए,
आदतन मजबूर होकर के कोई,
मनचला कौआ, चुभा दे चोंच ना।

गर बढ़ो, संकल्प से आगे बढ़ो,
पर्वतों के शीश पर हँस-हँस चढ़ो,
लक्ष्य का चिंतन, मनन कर लीजिये,
कर्म करके बाद में क्या सोचना।

पत्थरों को ठोकरों से मोड़िए,
पर अधूरे कर्म को मत छोड़िए,
गड्डों से पानी निकलता है नहीं,
दोस्तो तुमको कुआँ है खोदना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.