Saturday, November 25, 2017

451. मुख पंकज सम (मुक्तक)

451. मुख पंकज सम (मुक्तक)

मुख पंकज सम, अधर कली सम, भृकुटी तीक्ष्ण    कटार लिए।
ग्रीवा   कदली,  तन  सांरगी,  उन्नत  वक्ष उभार  लिए।
साँसों  में  चंदन की  खुशबू, संग सुगंधित  ब्यार लिए।
धरती  से अम्बर  तक  जैसे  यौवन  है  विस्तार  लिए।

अँखियाँ नील गगन सी दीखें  नूतन एक जहान लिए।
दंतपंक्ति  मोतिन  सी शोभे, अधरों पर मुस्कान लिए।
डोल रही ज्यों रती धरा पर, दिल में सौ अरमान लिए।
नजर कटीली उर में धँसकर, जाती हो ज्यों प्रान लिए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.11.2017
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