Sunday, November 19, 2017

447. तुम्हारी चाह में हद से (मुक्तक)

447. तुम्हारी चाह में हद से (मुक्तक)

तुम्हारी चाह में  हद से, गुजर  जाने  की  सोची है।
जिधर भी ले चलोगी तुम, उधर जाने की सोची है।
तुम्हें दिल में बसाकर  के, तुम्हारा नाम  लेकर  के।
मुहब्बत  के  समुंदर  में, उतर जाने  की  सोची है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.11.2017
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