Friday, November 10, 2017

440. अपने मन की तुम कात रहे (दुर्मिला सवैया)

440. अपने मन की तुम कात रहे (सवैया)

अपने मन की तुम कात रहे, कब नाथ सुनी हमरे मन की।
तुम बातन से भटकात रहे, कहुँ धर्मन की कहुँ जातन की।
दिन पै दिन हालत और गिरी, कमजोर, गरीब, किसानन की।
सच बात कहूँ बड़ भूल करी, तुमको सरदार बनाबन की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.11.2017
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