440. अपने मन की तुम कात रहे (सवैया)
अपने मन की तुम कात रहे, कब नाथ सुनी हमरे मन की।
तुम बातन से भटकात रहे, कहुँ धर्मन की कहुँ जातन की।
दिन पै दिन हालत और गिरी, कमजोर, गरीब, किसानन की।
सच बात कहूँ बड़ भूल करी, तुमको सरदार बनाबन की।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.11.2017
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