450. पकड़ा एक गरीब (रोला छंद)
पकड़ा एक गरीब एक दिन एक सिपाही।
थाने लेकर गया मिली जब नहीं उगाही।
दारोगा के पास जाय, पेशी करवाई।
हाथ जोड़ गिड़गिड़ा, व्यक्ति ने व्यथा सुनाई।
दारोगा ने कहा ठीक है, रहम कर रहा।
चल सौ अभी निकाल, मामला खत्म कर रहा।
मुझ गरीब के पास, अगर पैसा ही होता।
तो थाने में नहीं मजे से घर में सोता।
भिखमंगे को अरे उठा क्यों थाने लाया।
किसको पकड़ा जाय अभी तक सीख न पाया।
फिर गुर्राकर कहा दूर नजरों से ले जा।
खाना - पूरी हुई जेल में उसको भेजा।
लड़त-लड़त तारीख जिस्म हो गया छुआरा।
गया कर्ज में डूब खेत - घर बेचा सारा।
पाँच वर्ष के बाद बरी हो जब वह छूटा।
मुख से उसके और नहीं कुछ इतना फूटा।
दयावान नहिं नाथ आपसा कोई होगा।
ईश्वर करे बनें जज से इक रोज दरोगा।
तब लोगों ने कहा अरे यह क्या तू कहता।
जज होता है बड़ा दरोगा छोटा होता।
जिस विवाद को पाँच साल में जज निपटाते।
सौ रुपयों में उसे दरोगा खत्म कराते।
फिर किस तरह दरोगा इक जज से कम होता।
मेरे लिए दरोगा तो ईश्वर सम होता।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.11.2017
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