Saturday, November 18, 2017

446. अक्सर सकल जहान (रोला छंद)

446. अक्सर सकल जहान (रोला छंद)

अक्सर सकल जहान धर्मगुरु चोर उचक्के।
नारिन पर  कस तंज  व्यंग के  मारें  छक्के।
ऐसे  ही   इक  बार   मंच  पर   दूल्हे  राजा।
परिचय  रहे  कराय  मित्र  से  बोले  आजा।

हँसकर  कहा सुनाय मिलो यह  मेरी साली।
अब  से  यह  बन  गईं अर्ध  मेरी   घरवाली।
साली तो चुप रही नहीं कुछ खुलकर बोली।
पर  दुल्हन  के  लगी  बात  हो  जैसे  गोली।

तब दुल्हन ने  उसी  मित्र  को पास  बुलाया।
देवर का कर पकड़  उसे परिचय  करवाया।
हँस-मुस्काकर  कहा  मिलो  ये  हमरे  देवर।
अब  से  हमरी  जान  दूसरे  पति  परमेश्वर।

सुन दुल्हन का तंज दुल्हा जी  हक्के-बक्के।
सब के सब  स्तब्ध रह  गए  सब  भौचक्के।
यों  नारी  ने  किया  पुरुष के दंभ का' मर्दन।
अब तक थी जो तनी झुका डाली  वो गर्दन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.11.2017
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